यही नहीं अन्य सामान्य महिलाएं भी रोगों से पीडि़त होकर पहुंचती है तो उनके गुप्त रोगों की जांच के लिए भी डॉक्टर लिखते हैं लेकिन विडंबना है कि ये दोनों ही तरह की जांचे एमसीएच या बाल चिकित्साल में नहीं होकर एमसीएच से करीब पौन किलोमीटर दूर जिला अस्पताल में आना पड़ता है। यही नहीं जांच के बाद किसी को गुप्त रोग या एचआईवी पाजीटिव मिलता है तो उसे इनकी गोलियां लेने के लिए भी पहले एमसीएच और बाद में जिला अस्पताल की दौड़ लगाना पड़ती है।
पहले जिला अस्पताल में थी ओपीडी
एमसीएच बनने के पहले जिला अस्पताल में ही मेटरनिटी थी। इसलिए यहीं पर लैबर रूम और महिलाओं की ओपीडी थी तो उस समय जिला अस्पताल में ही इन दोनों सेंटरों की स्थापना की गई थी किंतु एमसीएच के बनने के बाद मेटरनिटी और महिलाओं की ओपीडी भी एमसीएच में चली गई है तो नियमानुसार इन दोनों क्लीनिक को भी एमसीएच में ही होना चाहिए। बताया जाता है कि अस्पताल प्रशासन ने आईसीटीसी और एसटीडी क्लिनिक को एमसीएच में स्थानांतरित करने की तैयारी कर ली थी किंतु फिर से इसे निरस्त कर दिया गया है।
यह होता है आईसीटीसी और एसटीडी क्लीनिक मेें एचआईवी एड्स कंट्रोल कार्यक्रम के अंतर्गत हर जिला अस्पताल में गर्भवती और सामान्य महिलाओँ की जांच के लिए आईसीटीसी और एसटीडी क्लीनिक खोले हुए हैं। आईसीटीसी में एचआईवी की जांच की जाती है और एसटीडी क्लीनिक पर महिलाओं के गुप्त रोगों की जांच होती है। किसी महिला को गुप्त रोग सामने आता है तो दवाइयां भी एसटीडी क्लीनिक से दी जाती है जबकि एचआईवी पाजीटिव महिला और उसके होने वाले बच्चे को बचाव के लिए भी दवाइयां देना होती है। एचआईवी पीडि़त महिला के प्रसव के तुरंत बाद उसके नवजात शिशु को दवाइयां दी जाना होती है जिससे वह इस भयानक रोग से मुक्त हो जाए। इस वजह से भी आईसीटीसी को जिला अस्पताल की बजाय एमसीएच में होना जरुरी है।
एमसीएच भेजने के लिए लिखेंगे पत्र
यह सही है कि एमसीएच और जिला अस्पताल की दूरी होने से आईसीटीसी और एसटीडी क्लीनिक में जांच के लिए महिलाओं को जिला अस्पताल आना पड़ता है। आईसीटीसी और एसटीडी क्लीनिक नियमानुसार लैबर रूम और महिलाओँ की ओपीडी के पास ही होना चाहिए। हमने पहले भी इसे भेजने के लिए पत्र लिखा था किंतु बाद में भोपाल से इसे निरस्त कर दिया है। हम नए सिरे से कलेक्टर के माध्यम से इसकी व्यवस्था कराएंगे।
– डॉ. आनंद चंदेलकर, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल, रतलाम