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रतलाम

संघर्ष की वो कहानी, जो आंसू ला देगी….पढ़ाई के लिए मजदूरी तक कबूल

– अब समाजसेवा में अग्रणी नाम है शबाना खान- 25 हजार वृद्जन पंजीकृत, 35 सौ से अधिक बालिकाओं को किया सेल्फ डिफेंस में प्रशिक्षित

रतलामOct 18, 2022 / 03:52 pm

Sikander Veer Pareek

संघर्ष की वो कहानी, जो आंसू ला देगी....पढ़ाई के लिए मजदूरी तक कबूल

संघर्ष की वो कहानी, जो आंसू ला देगी….पढ़ाई के लिए मजदूरी तक कबूल

रतलाम। कक्षा सात में अध्ययनरत थी कि आर्थिक कारण से निजी स्कूल छोड़ना पड़ा। चूंकि पढ़ने की ललक थी। 10वीं तक सरकारी स्कूल में अध्ययन किया। एक बार फिर समस्याओं ने रोड़ा अटकाना शुरू किया। ऐसे में टमाटर पैकिंग कार्य कर परिवार का आर्थिक सहारा बनने का प्रयास किया। परिजन शादी के लिए दबाव बनाने लगे तो टालने के लिए कह दिया- ग्रेजुएशन के बाद। ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने के 15 दिन बाद ही शादी कर दी गई। इसके बाद पति व ससुराल पक्ष के सहयोग से अध्ययन जारी रखा। संघर्ष व तालीम के बूते रतलाम की शबाना खान समाजसेवा में एक अग्रणी नाम है। वरिष्ठजनों, बालिकाओं से लेकर समाज के कई वर्गों के लिए शबाना खान कार्य कर रही हैं। आज शबाना न केवल महिलाओं व बालिकाओं बल्कि रेलवे, पुलिस सहित कई विभागों की महिला अधिकारियों व कार्मिकों को महिला कानून-सुरक्षा संबंधित पाठ पढ़ाती है।
पांच बहिनों में सबसे बड़ी, पूरी जिम्मेदारी निभाई
शबाना की संघर्ष की कहानी प्रेरणादायक है। पांच बहिनों में सबसे बड़ी। पिता होमगार्ड में थे। शबाना कुछ करना चाहती थी लेकिन आर्थिक हालत गवाही नहीं दे रही थी। सुबह नौ से रात नौ बजे तक उसने टमाटरों की पैकिंग का कार्य किया। यहां से जो मिलता, उससे परिवार के गुजारे के साथ-साथ स्वयं की पढ़ाई करती। स्वयं की शादी के बाद अपनी चार बहिनों की शादी करवाई।
इस तरह बनाया मुकाम
शबाना के सामने जिम्मेदारियां पहाड़ सी थी, ऐसे में आर्थिक स्वावंबन के लिए एक एनजीओ से जुड़ी। पहली तनख्वाह 2500 रुपए मिली। इसके बाद आर्थिक पक्ष को एक तरफ रखकर शबाना पूरी तरह समाजसेवा में जुट गई। प्रारंभ में विभिन्न संस्थाओं के साथ प्रोजेक्ट किए। इस दौरान कुछ वरिष्ठजनों की तकलीफ सामने आई तो उन्हीं के लिए कार्य करने की ठानी। कारवां बनता गया और आज शबाना के साथ 25 हजार वरिष्ठजन जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही अब तक 3500 बच्चियों को सेल्फ डिफेंस में प्रशिक्षित कर चुकी है। शबाना को रेलवे में नौकरी भी मिल गई थी, लेकिन उसने अपना ध्येय समाजसेवा को ही बना लिया।
स्वयं सहायता समूह से संवारी जिन्दगियां
शहर में विभिन्न घरों में कार्य करने वाली महिलाओं ने छेड़छाड़ और अन्य समस्याएं रखी। इस पर शबाना ने स्वयं सहायता समूह का सुझाव दिया और आज वे महिलाएं घरों में बर्तन-मांजना छोड़कर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गई है। नुक्कड़ नाटक से सामाजिक संदेश कई बार दिए तो दीपावली व अन्य पर्व पर जरररुतमंदों को मिठाई, कपडे व अन्य सामाग्री पहुंचाने के लिए सतत प्रयतन्तशील रहती है।
बेटा-बेटी, ग्रीन बेल्ट धारक
शबाना की बेटी 12वीं में अध्ययनरत है और बेटा आठवीं में। दोनों ही ग्रीन बेल्ट धारक है। बकौल शबाना बेटी को कभी शिक्षा में किसी भी क्षेत्र में कमी महसूस नहीं होने दी। गीता ज्ञान प्रतियोगिता में बेटी ने पूरे प्रदेश में अच्छा मुकाम बनाया तो स्कूल में कन्या भारती ग्रुप की अध्यक्ष भी है।

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