इसके पश्चात शाहजहां के समय में रतलाम क्षेत्र पृथ्वीराज राठौड़ भारमल्लोत के अधिकार क्षेत्र में था। वह नोलाई (बडऩगर) में निवास करता था। सन् 1649 ई के मध्य पृथ्वीराज दक्षिण भारत के किसी युद्ध में घायल हो किसी गुप्त स्थान पर स्वास्थ्य-लाभ ले रहा था। उस समय मालवा-नोलाई परगने में यह अफवाह फैल गई कि पृथ्वीराज का निधन हो चुका है। तब आदिवासी योद्धा तारिया मईड़ा का वंशज मानसिंह मईड़ा ने रतलाम क्षेत्र में आतंक मचाया एवं इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में बादशाह ने जालोर (राज) के राजकुमार रावरतनसिंह राठौड़ को इस क्षेत्र की सुरक्षा करने के लिए भेजा।
20 दिसंबर 1649 ई के बाद राव रतनसिंह अपने ममेरे भाई सांचोरा चौहान भगवानदास के साथ रतलाम आया एवं ग्राम धराड़ में मुकाम किया। रावरतनसिंह ने जनवरी 1650 ई में मानसिंह मईड़ा का आतंक समाप्त किया। गुरुजनों की पोथी एवं नगरसाक्ष के आधार पर जन-जन का मानना है कि राव रतनसिंह राठौड़ ने रतलाम राज्य की नींव माद्य शुक्ल बसंत पंचमी, सम्वत 1706 विक्रम, तदानुसार दिनांक 5 फरवरी 1650 ई. को, शनिवार (थावरवार) के दिन प्रात: 2 घटी, 30 पल 00 विपल पर रखी। थावरिया बाजार आज भी साक्ष के रूप में राजमहल के पूर्व दक्षिण कोण में स्थित है।