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रतलाम

आईना-ए-अकबरी में क्यों है रतलाम की विकास गाथा, पढ़े पूरी खबर

आईना-ए-अकबरी में क्यों है रतलाम की विकास गाथा, पढ़े पूरी खबर

रतलामFeb 09, 2019 / 10:50 pm

Gourishankar Jodha

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आईना-ए-अकबरी में क्यों है रतलाम की विकास गाथा, पढ़े पूरी खबर

रतलाम। आज रत्नपुरी अपने स्थापना दिवस के 369 वर्ष पूर्ण कर 370 वां स्थापना दिवस मना रही है, मुगल सम्राट अकबर (सन् 1556-1605 ई) के समय में ‘सोढ़ीयो का गांवÓ का नामकरण ‘रतलामÓ हुआ था। उस समय रतलाम वीर सोढ़ी राजपूतों की बस्ती था, जहां लगभग 500-600 सोढिय़ों की आबादी थी। यहां के अनेक वीर युवक मुगलसेना में थे तथा अन्य युवा वर्ग मुगल सेना में भर्ती के लिए निरंतर युद्धाभ्यास करते रहते थे। अकबर की सभा के नवरत्नों में से एक प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन मध्यदेश ग्वालियर के ही थे। आपके ध्रूपदों की भाषा शैली से स्पष्ट होता है कि उस समय भारत की बोलचाल की भाषा में संस्कृत एवं फारसी शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा था। उस समय उज्जैन सरकार के नोलाई (बडऩगर) परगने का यह गांव सौढ़ीयों के पराक्रम से अच्छी खासी पहचान बना चुका था।
ज्योतिर्विद इतिहासकार पं. गोचर शर्मा ने बताया कि शब्द ‘रतÓ संस्कृत का पुलिंग शब्द है तथा ‘लामÓ का अर्थ है, किसी कार्य में निरंतर लगा हुआ एवं ‘लामÓ का मतलब है युद्ध। इस प्रकार अकबर के युग में किसी समय युद्ध कौशल में निरंतर लगे हुए योद्धाओं के ग्राम से प्रसिद्ध इस स्थान का नाम ‘रतलामÓ पड़ा। संभव है, इस नामकरण में कही संगीत सम्राट तानसेन का योगदान हो, इतिहास की दृष्टि से इस स्थान का नाम ‘रतलामÓ प्रथम बार आईना-ए-अकबरी में प्राप्त होता है।
रतलाम क्षेत्र में मचाया आतंक
इसके पश्चात शाहजहां के समय में रतलाम क्षेत्र पृथ्वीराज राठौड़ भारमल्लोत के अधिकार क्षेत्र में था। वह नोलाई (बडऩगर) में निवास करता था। सन् 1649 ई के मध्य पृथ्वीराज दक्षिण भारत के किसी युद्ध में घायल हो किसी गुप्त स्थान पर स्वास्थ्य-लाभ ले रहा था। उस समय मालवा-नोलाई परगने में यह अफवाह फैल गई कि पृथ्वीराज का निधन हो चुका है। तब आदिवासी योद्धा तारिया मईड़ा का वंशज मानसिंह मईड़ा ने रतलाम क्षेत्र में आतंक मचाया एवं इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में बादशाह ने जालोर (राज) के राजकुमार रावरतनसिंह राठौड़ को इस क्षेत्र की सुरक्षा करने के लिए भेजा।
मानसिंह मईड़ा का आतंक किया समाप्त
20 दिसंबर 1649 ई के बाद राव रतनसिंह अपने ममेरे भाई सांचोरा चौहान भगवानदास के साथ रतलाम आया एवं ग्राम धराड़ में मुकाम किया। रावरतनसिंह ने जनवरी 1650 ई में मानसिंह मईड़ा का आतंक समाप्त किया। गुरुजनों की पोथी एवं नगरसाक्ष के आधार पर जन-जन का मानना है कि राव रतनसिंह राठौड़ ने रतलाम राज्य की नींव माद्य शुक्ल बसंत पंचमी, सम्वत 1706 विक्रम, तदानुसार दिनांक 5 फरवरी 1650 ई. को, शनिवार (थावरवार) के दिन प्रात: 2 घटी, 30 पल 00 विपल पर रखी। थावरिया बाजार आज भी साक्ष के रूप में राजमहल के पूर्व दक्षिण कोण में स्थित है।
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