गीता में श्रीभगवान कहते हैं यज्ञ बिना यह लोक नहीं तो परलोक कैसा? : डॉ. प्रणव पंड्या
शरीर को आलस, असंयम, उपेक्षा एवं दुर्व्यसनों में पड़ा रहने दिया जाय तो उसकी सारी विशेषताएँ नष्ट हो जायेंगी। इसी प्रकार मन को अव्यवस्थित पड़ा रहने दिया जाय, उसे कुसंस्कार−ग्रस्त होने से संभाला न जाय तो निश्चय ही वह हीन स्थिति को पकड़ लेगा। पानी का स्वभाव नीचे की तरफ बहना है, ऊपर उठाने के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं तब सफलता मिलती है। मन का भी यही हाल है यदि उसे रोका, संभाला, समझाया, बांधा और उठाया न जाय तो उसका कुसंस्कारी दुर्गुणी, पतनोन्मुखी, आलसी एवं दीन−दरिद्र प्रकृति का बन जाना ही निश्चित है।
आज इसी प्रकार का मानसिक अवसाद चारों ओर फैल रहा है। शरीर की दुर्बलता और बीमारी जिस प्रकार व्यापक रूप से फैली दिखाई देती है वैसी ही हमारी मानसिक दुर्बलता एवं रुग्णता भी कम शोचनीय नहीं है। कलह प्रिय, क्रोधी, तुनक-मिज़ाज, असहिष्णु, ईर्ष्यालु, छिद्रान्वेषी, अहंकारी, उद्दण्ड, प्रकृति के लोगों से हमारा समाज भरा पड़ा है। इन दुर्गुणों के कारण पारस्परिक प्रेम−भावना, आत्मीयता एवं घनिष्ठता दिन−दिन नष्ट होती जाती है और एक आदमी दूसरे से दिन−दिन दूर पड़ता जाता है।
विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है, इसलिए ईश्वर को कभी मत भूलो : विक्रम साराभाई
प्रेम, सहयोग, प्रसन्नता, मुस्कान, नम्रता, उदारता, सहिष्णुता, शिष्टता, कृतज्ञता के गुणों से यदि मनोभूमि परिष्कृत हो तो परस्पर का प्रेम−भाव कितना बढ़े, कितना सुदृढ़ रहे और फलस्वरूप कितनी प्रगति एवं प्रसन्नता का वातावरण बन जाय?
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