script

गीता में श्रीभगवान कहते हैं यज्ञ बिना यह लोक नहीं तो परलोक कैसा? : डॉ. प्रणव पंड्या

locationभोपालPublished: Jan 20, 2020 05:40:03 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

गीता में श्रीभगवान कहते हैं यज्ञ बिना यह लोक नहीं तो परलोक कैसा? : डॉ. प्रणव पंड्या

01_8.jpg

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में यज्ञ की महत्ता बताते-बताते अपने कथन की पूर्णता इन शब्दों में व्यक्त कर दी है कि जो यज्ञावशिष्ट अमृत का भोग करते हैं, वे ही सनातन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। (यज्ञशिष्टामृतभुजो यांति ब्रह्म सनातनम्)। वे कहते हैं कि यज्ञ ही विश्व का विधान है, यज्ञ के बिना जीवन ही नहीं, पारलौकिक जीवन में भी कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। न इस लोक में प्रभुत्व मिल सकता है, न परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसके बाद वे कहते हैं कि “ब्रह्म के मुख में अर्थात् वेद की वाणी में इस प्रकार के अनेक प्रकार के यज्ञ वर्णित हैं। इन सबको तू कर्म से अर्थात् मन, इंद्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा उत्पन्न जानना, किंतु यह भी जान ले कि परमात्मा कर्मादि से परे है, ऐसा जानकर तू संसार बंधन से मुक्त हो सकेगा।

 

विचार मंथन: अच्छे व्यवहार का रहस्य : संत तुकाराम

 

इकतीसवें श्लोक की पराकाष्ठा बत्तीसवें श्लोक में देखने को मिलती हैं। ये सभी यज्ञ जो ऊपर बताए गए भगवान् विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के अनुसार ब्रह्मा के मुख से विस्तृत हुए हैं, उस अग्नि के मुख से जो सभी हव्यों को ग्रहण करती है। सर्वव्यापी ब्रह्म ही सदा यज्ञों में प्रतिष्ठित हैं। संसार के सभी प्रकार के कर्म परमपिता परमात्मा के उद्देश्य से अर्पित यज्ञ बन सकते हैं। यदि हम भोजन करें तो यह मानकर करें कि ब्रह्म को आहुति दे रहे हैं, जगज्जननी महाकाली को भोजन करा रहे हैं। यदि मार्ग पर चल रहे हों तो यह भावना करें कि जगन्माता की प्रदक्षिणा कर रहे हैं। कायिक, वाचिक, मानसिक ये तीनों प्रकार के कर्म जब प्रभु की प्रसन्नता के लिए, ईश्वर में अर्पण बुद्धि से किए जाएँ, तो सभी कर्म यज्ञ में परिणत हो जाते हैं। ऐसे यज्ञों का प्रतिफल पहले चित्त की शुद्धि फिर आत्मोपलब्धि-जीवन्मुक्ति के रूप में मिलता है।

 

अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नही हो पाता : स्वामी विवेकानंद

 

गीताकार के काव्य का सौंदर्य उसके शब्दों के गुंथन से बढ़कर उसके भावों की निरंतर उच्चतर-उच्चतम सोपान पर चलते जाने के क्रम में दिखाई पड़ता है। यदि हम यह मर्म जान लें कि हमें कर्म क्यों करना है, किसके लिए करना है, यज्ञीय भाव से किए गए कर्म क्या होते हैं एवं जीवन को यदि बंधनों में बंधने से बचाकर मुक्ति का पथ प्रशस्त कैसे करना है, तो हम जीवन-दर्शन जान लेते हैं।

***********************

ट्रेंडिंग वीडियो