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विचार मंथन : वक्त बर्बाद करने वाले दोस्तों से दूर रहना चाहिए, निठल्ले लोग ही अक्सर दूसरे का वक्त बर्बाद करते हैं- भगवती देवी शर्मा

bhagwati devi sharma : ने कहा है, खेल-कूद मनोरंजन का समय बारह वर्ष की उम्र तक है, इसके बाद समय को जरा भी नष्ट मत होने दीजिये

भोपालJun 25, 2019 / 04:38 pm

Shyam

daily thought vichar manthan

विचार मंथन : वक्त बर्बाद करने वाले दोस्तों से दूर की ‘नमस्ते’ रखनी चाहिए, निठल्ले लोग ही अक्सर दूसरे का वक्त बर्बाद करने जा पहुंचते हैं- भगवती देवी शर्मा

समय की बर्बादी

समय की बर्बादी आज-कल मनोरंजन के नाम पर भी बहुत होती है। रेडियो, सिनेमा, खेल-तमाशे, ताश, शतरंज आदि में हम नित्य ही अपना बहुत-सा समय बर्बाद करते रहते हैं। महात्मा गांधी ने एक बार अपने पुत्र मणिलाल को पत्र में लिखा था। ‘‘खेल-कूद मनोरंजन का समय बारह वर्ष की उम्र तक है।’’ आज हम इसमें अपना कितना वक्त खर्च करते हैं यह स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं। मनोरंजन खेल आदि को जीवन में रखा ही जाय तो उसके लिए भी एक नियत समय रखना चाहिये।

 

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ऐसे दोस्तों से दूर रहे

अपने आस-पास का वातावरण, ऐसा रखना चाहिए कि अपना समय किसी कारण बर्बाद न हो। वक्त बर्बाद करने वाले दोस्तों से दूर की ‘नमस्ते’ रखनी चाहिए। निठल्ले लोग ही अक्सर दूसरे का वक्त बर्बाद करने जा पहुंचते हैं। इन्हें दोस्त नहीं दुश्मन मानना ही उचित है। स्मरण रखिये समय बहुत मूल्यवान् वस्तु है। इससे आप जितना लाभ उठा सकते हैं उठायें। आप वक्त को नष्ट करेंगे तो वक्त भी आपको नष्ट कर देगा। वक्त के सदुपयोग पर ही आप कुछ बन सकते हैं।

 

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व्यक्तित्व की महत्ता

समय बड़ा मूल्यवान् है। उसे बड़ी कंजूसी से खर्च करना चाहिए। जितना अपने समय-धन को बचाकर उसे आवश्यक उपयोगी कार्यों में लगावेंगे उतनी ही अपने व्यक्तित्व की महत्ता एवं कीमत बढ़ती जायगी। नियमित समय पर काम करने का अभ्यास डालें। इसकी आदत पड़ जाने पर आपको स्वयं ही इसमें बड़ा आनन्द आने लगेगा।

 

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जरा अनुमान लगाइये

यदि मनुष्य प्रतिदिन किसी काम विशेष में थोड़ा-थोड़ा समय भी लगावें तो वह उससे महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त कर सकता है महामनीषी स्वेटमार्डेन ने कहा है, जीवन भर एक विषय में नियमित रूप से प्रतिदिन एक घण्टा लगाने वाला व्यक्ति उस विषय का उद्भट विद्वान बन सकता है। जरा अनुमान लगाइये कोई भी प्रतिदिन एक घण्टे में बीस पृष्ठ पढ़ता है तो साल में 7300 पृष्ठ पढ़ डालेगा। अर्थ हुआ 100 पृष्ठ की 73 पुस्तकें वह एक साल में पढ़ लेगा। दस वर्ष में 730 पुस्तकें पढ़ने वाले व्यक्ति के ज्ञान का विचार-स्तर कैसे होगा? इसके बारे में पाठक स्वयं ही अन्दाज लगा सकते हैं। अतः समय को मामूली न समझें नियमित रूप से कोई भी काम आप करेंगे तो धीरे-धीरे उसमें बहुत बड़ी योग्यता हासिल कर लेंगे यह निश्चित है।

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