scriptविचार मंथन : अध्ययन ही नहीं स्वाध्याय भी किया करो- महर्षि श्री अरविन्द | Daily Thought Vichar Manthan : Maharishi Arvind | Patrika News
धर्म और अध्यात्म

विचार मंथन : अध्ययन ही नहीं स्वाध्याय भी किया करो- महर्षि श्री अरविन्द

Daily Thought Vichar Manthan : पढ़ना दो तरह का होता है- एक बौद्धिक विकास के लिए, दूसरा मन- प्राण को स्वस्थ करने के लिए- महर्षि श्री अरविन्द

भोपालSep 05, 2019 / 05:47 pm

Shyam

Daily Thought Vichar Manthan : Maharishi Arvind

विचार मंथन : अध्ययन ही नहीं स्वाध्याय भी किया करो- महर्षि श्री अरविन्द

पाण्डिचेरी आश्रम महर्षि श्री अरविन्द के शिष्य नलिनीकान्त अपनी सोलह वर्ष की आयु से लगातार श्री अरविन्द के पास रहे। श्री अरविन्द उन्हें अपनी अन्तरात्मा का साथी- सहचर बताते थे। नलिनीकान्त गुप्त ने स्वाध्याय के बारे में अपना उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कई मार्मिक बातें कही हैं। वे लिखते हैं कि आश्रम में आने पर अन्यों की तरह मैं भी बहुत पढ़ा करता है। अनेक तरह के शास्त्र एवं अनेक तरह की पुस्तकें पढ़ना स्वभाव बन गया था। एक दिन श्री अरविन्द ने बुलाकर उनसे पूछा- इतना सब किसलिए पढ़ता था। उनके इस प्रश्र का सहसा कोई जवाब नलिनीकान्त को न सूझा। वह बस मौन रहे।

 

विचार मंथन : साधक वही जो हर पल सावधानी से इन पंच महाबाधाओं से बचते हुए साधना-पथ पर चलता रहे- स्वामी विवेकानंद

वातावरण की इस चुप्पी को तोड़ते हुए श्री अरविन्द बोले- देख पढ़ना बुरा नहीं है। पर यह पढ़ना दो तरह का होता है- एक बौद्धिक विकास के लिए, दूसरा मन- प्राण को स्वस्थ करने के लिए। इस दूसरे को स्वाध्याय कहते हैं और पहले को अध्ययन। तुम इतना अध्ययन करते हो सो ठीक है, पर स्वाध्याय भी किया करो। इसके लिए अपनी आन्तरिक स्थिति के अनुरूप किसी मन्त्र या विचार का चयन करो। और फिर उसके अनुरूप स्वयं को ढालने की साधना करो। नलिनीकान्त लिखते हैं, यह बात उस समय की है, जब श्री अरविन्द सावित्री पूरा कर रहे थे। मैंने इसी को अपने स्वाध्याय की चिकित्सा की औषधि बना लिया।

 

विचार मंथन : हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है- डॉ राधाकृष्णन सर्वेपल्ली

फिर मेरा नित्य का क्रम बन गया। सावित्री के एक पद को नींद से जगते ही प्रातःकाल पढ़ना और सोते समय तक प्रतिपल- प्रतिक्षण उस पर मनन करना। उसी के अनुसार साधना की दिशा- धारा तय करना। इसके बाद इस तय क्रम के अनुसार जीवन शैली- साधना शैली विकसित कर लेना। उनका यह स्वाध्याय क्रम इतना प्रगाढ़ हुआ कि बाद के दिनों में जब श्री अरविन्द से किसी ने पूछा- कि आपके और माताजी के बाद यहां साधना की दृष्टि से कौन है? तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा- नलिनी।

 

विचार मंथन : दिन-रात के चौबीस घंटे में से प्रत्येक क्षण का सर्वाधिक सुन्दर तरीके से उपयोग करने की कला- आचार्य श्रीराम शर्मा

श्री अरंविद इतना कहकर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले, ‘नलिनी इज़ इम्बॉडीमेण्ट ऑफ प्यूरिटी’ यानि कि नलिनी पवित्रता की मूर्ति है। नलिनी ने वह सब कुछ पा लिया है जो मैंने या माता जी ने पाया है। ऐसी उपलब्धियां हुई थीं स्वाध्याय चिकित्सा से नलिनीकान्त को। हालांकि वह कहा करते थे कि स्वस्थ जीवन के लिए शुरूआत अपनी स्थिति के अनुसार मन के स्थान पर तन से भी की जा सकती है। इसके लिए हठयोग की विधियां श्रेष्ठ हैं।

*******

Home / Astrology and Spirituality / Religion and Spirituality / विचार मंथन : अध्ययन ही नहीं स्वाध्याय भी किया करो- महर्षि श्री अरविन्द

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो