नई दिल्ली। आज 26 फरवरी को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। महाशिवरात्रि और होली के बीच में आती है रंगभरी एकादशी। इस एकादशी को रंगभरी ग्यारस और आमलकी एकादशी कहा जाता है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य का अध्याय है। इसमें श्रीकृष्ण ने सालभर की सभी एकादशियों का महत्व युधिष्ठिर को बताया है। इस दिन बाबा विश्वनाथ को दूल्हे की तरह सजाया जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती शादी के बाद पहली बार काशी आए थे। इसी खुशी में काशी में होली से पहले ही रंगों के साथ ये पर्व मनाया जाता है। एकादशी पर किए जाने वाले व्रत-उपवास, पूजा-पाठ से सभी पाप नष्ट हो सकते हैं। यहां जानिए सोमवार और एकादशी के योग में कैसे करें दोनों देवों को प्रसन्न।
इस दिन भगवान शिव शरीर पर क्यों लगाते हैं भस्म? नगरों में घूमते हैं बाबा विश्वनाथ इस दिन की मान्यता है कि आशीर्वाद देने के लिए बाबा अपने भक्तों और श्रद्धालुओं के बीच जाते हैं। साथ में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है और, इसी दिन से काशी में होली की शुरुआत होती है। आपको बता दें काशी में हर साल बाबा विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद आने वाली अन्नकूट और महाशिवरात्रि के दौरान किया जाता है।
ये है व्रत करने की विधि एकादशी की सुबह स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। व्रत करने वाले व्यक्ति को दिनभर अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, अगर ये संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करें। पूजा किसी ब्राह्मण से करवाएंगे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद चरणामृत ग्रहण करें। भगवान को फूल, धूप, नैवेद्य आदि सामग्री चढ़ाएं। दीपक जलाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। व्रत की कथा सुनें। दूसरे दिन यानी द्वादशी पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
एकादशी पर कर सकते हैं ये उपाय भी, सोमवार को ऐसे करें भगवान शिव की पूजा, मनोकामनाओं की होगी पूर्ति कैसे करें पूजा काशी में ना होकर भी आप इस रंगभरी एकादशी को अपने घर पर मना सकते हैं। इसके लिए नीचे दिए गए कार्य करें। 1- सुबह उठकर नहाएं और शिव-पार्वती की पूजा करें। 2- शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं। 3- भगवान शिव को प्रिय चीज़ें जैसे बेलपत्र दूध, इत्र और भांग चढ़ाएं।