कल्चुरि काल की त्रिपुर सुंदरी मूर्ति का रहस्य वर्तमान में भी बरकरार है। इस मूर्ति को लेकर अभी भी पुरातत्व और शोधार्थियों की खोज जारी है। मूर्ति को लेकर लोग अलग-अलग तर्क देते हैं, जो कथाओं और पुराणों में व्याप्त है। इसके बाद भी शोधकर्ता इस मूर्ति की खोज में निरंतर जुटे हुए हैं। एेसे ही रोचक तथ्यों के जरिए पत्रिका प्लस हेरिटेज विंडो कॉलम में आपको त्रिपुर सुंदरी प्रतिमा के स्वर्णिम इतिहास से आज रूबरू करवाएगा जाएगा।
तांत्रिक पीठ था त्रिपुर केन्द्र
इतिहासविद् डॉ. आनंद सिंह राणा ने बताया कि त्रिपुर सुंदरी मूर्ति को लेकर कई तरह की मान्यताएं सुनने को मिलती है। दरअसल त्रिपुर केन्द्र तांत्रिक पीठ हुआ करता था, जहां तांत्रिक कठोर साधना करके शिव को खुश किया करते थे। पुराणों में दर्ज है कि मूर्ति शिव के पांच रूपों से बनी थी, जिसमें ततपुरुष, वामदेव, ईशान, अघोर और सदोजात शामिल है। एक ओर यह भी दर्ज है कि त्रिपुर क्षेत्र में त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध हुआ था।
कर्ण ने बनवाई थी प्रतिमा
मंदिर के इतिहास को वर्तमान में कल्चुरि काल से जोड़ा जाता है, जो उस समय से ही पूजित प्रतिमा है। इनके तीन रूप राजराजेश्वरी, ललिता और महामाया के माने जाते हैं। एेसा मान्य है कि राजा कर्ण के सपने में आदिशक्ति का रूप मां त्रिपुरी दिखाई दी थीं। सपने में दिखी मां त्रिपुरी को स्थापित करने के लिए राजा कर्ण ने इसकी स्थापना करवाई थी।