ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि इस संबंध में दुर्गा सप्तशती में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अनुसार महिषासुर को मारने के लिए मां दुर्गा की उत्पत्ति सभी देवताओं के तेज से हुई थी। दुर्गा माता ने देवताओं की इस सम्मिलित शक्ति के बल पर महिषासुर का वध कर संसार को उसके आतंक से मुक्त कर दिया था।
दुर्गा सप्तशती में दिए गए विवरण के अनुसार दुर्गाजी का मुख शिवजी के तेज से बना। इसके बाद विष्णुजी ने अपने तेज से उन्हें भुजाएं प्रदान कीं. सूर्य के तेज से दुर्गाजी के पैरों की उंगलियां और चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल बना. देवी दुर्गा की नाक कुबेर के तेज से बनी, दक्ष प्रजापति के तेज से दांत बने, संध्या के तेज से भृकुटि बनी और वायु के तेज से कान बने। दुर्गाजी के केश यमराज के तेज से बने और उनके नेत्रों ने अग्नि के तेज से आकार लिया।
महिषासुर का वध करने के लिए दुर्गा रूप में अवतरित होने के बाद देवी को सभी देवताओं ने शक्तियां भी दीं। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर बताते हैं कि दुर्गा सप्तशती के अनुसार भगवान विष्णु ने मां दुर्गा को सुदर्शन चक्र दिया जबकि भगवान शिव ने उन्हें त्रिशूल भेंट किया। इसी प्रकार मां दुर्गा को देवराज इंद्र ने वज्र प्रदान किया तो यमराज ने कालदंड, वरुणदेव ने शंख, पवनदेव ने धनुष-बाण दिए।
अनेक देवताओं ने दुर्गाजी को सुसज्जित भी किया। इसके लिए समुद्रदेव ने उन्हें आभूषण भेंट किए। प्रजापति दक्ष ने देवी दुर्गा को स्फटिक की माला दी तो सरोवर ने अक्षय पुष्प माला प्रदान की। कुबेरदेव ने दुर्गाजी को शहद का दिव्य पात्र भेंट किया। मां दुर्गा जिस शेर की सवारी करते हैं वह उन्हें पर्वतराज हिमालय ने भेंटस्वरूप प्रदान किया था।