ग्रीष्मकालीन फसल को लेकर शासन स्तर के अधिकारी भले ही एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हो लेकिन कृषि विभाग का मैदानी अमला बोवनी कराने को लेकर हाथ खड़ा कर रहा है। अधिकारियों की ओर से मांगी गई रिपोर्ट में मैदानी अमले ने लक्ष्य लेने से इंकार किया है। मैदानी अमले की रिपोर्ट है कि किसान ग्रीष्मकालीन फसल में बोवनी करने को तैयार नहीं हैं।
कृषि विभाग के शासन स्तर के अधिकारियों को योजनाओं के जरिए ग्रीष्मकालीन खेती में मूंग सहित अन्य फसलों की बोवनी कराने का लक्ष्य निर्धारित करना है। बोवनी का लक्ष्य और बजट निर्धारित करने के लिए शासन से रिपोर्ट मांगी गई है। रिपोर्ट के जरिए अधिकारियों ने यह जानना चाहा है कि जिले में कितने रकबे में ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी की संभावना है।
शासन स्तर से मांगी गई रिपोर्ट के मद्देनजर कृषि विभाग के स्थानीय अधिकारियों ने मैदानी अमले से रिपोर्ट मांगी तो उनके द्वारा बोवनी संभावना नहीं होने का हवाला दिया गया है। मैदानी अमले ने इसके लिए किसानों की अरूचि का हवाला दिया। वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारियों की दलील है कि कई कारणों से किसान ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी में रूचि नहीं ले रहे हैं। ऐसे में शासन की ओर से लक्ष्य मिला तो उसे पूरा करना मुमकिन नहीं होगा।
कृषि विभाग का मैदानी अमला अभी से लक्ष्य पूरा नहीं कर पाने का रट इसलिए भी लगा रहा है क्योंकि पिछले वर्ष मिले लक्ष्य को एक भी विकासखंड में पूरा करना संभव नहीं हो सका था। जैसे-तैसे अधिकारियों ने कोशिश करके थोड़ी बहुत बोवनी करा तो दी। लेकिन फसल को बचा पाना किसानों के लिए मुमकिन नहीं हो सका। गौरतलब है कि गत वर्ष ग्रीष्मकालीन फसल का महज १५ हजार हेक्टेयर लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
– ऐरा प्रथा ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी में अरूचि का सबसे बड़ा कारण है। गर्मी में छुट्टा मवेशियों के चलते बोवनी में फायदा कम नुकसान होने की अधिक संभावना रहती है।
– सिंचाई की असुविधा भी बोवनी में अरूचि का प्रमुख कारण है। सिंचाई के लिए एक ओर जहां नहर से पानी नहीं मिलता है। वहीं दूसरी ओर वाटर लेवल नीचे जाने से बोरिंग भी सूख जाते हैं।
– बोवनी में अरूचि का तीसरा कारण है कि रबी और खरीफ की फसल लेने के बाद किसान कुछ महीने के लिए खेती खाली रखकर उसे अगले सीजन के लिए तैयार करते हैं।