वर्ष 2007 -08 में काम के बदले अनाज की व्यवस्था शुरू की गई थी। पंचायतों में काम करने वाले मजदूरों को अनाज दिया गया। इसी बीच संबंधित विभाग के तत्कालीन अधिकारियों ने 55110 मेट्रिक टन चावल एवं गेहूं खुले बाजार में बेच दिया। तीन बार जांच के बाद तीन करोड़ रुपए से ज्यादा की वसूली प्रस्तावित की गई। तत्कालीन एसडीएम नंदा भलावे की अध्यक्षता में 36 सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट शासन को भेजी गई। जिसमें रीवा, रायपुर कर्चुलियान, गंगेव, त्योंथर सहित पांच जनपदों में सबसे ज्यादा गबन का मामला सामने आया। जांच के दौरान सभी नौ जनपदों में गड़बड़ी पाई गई। जांच कमेटी ने रिपोर्ट में नागरिक आपूर्ति निगम, सहकारी समितियों सहित पंचायत एवं ग्रामीण विकास के अधिकारियों को दोषी बताते हुए कार्रवाई का प्रस्ताव भेजा है। दस साल बीतने के बाद भी जिम्मेदारों पर जवाबदेही तय नहीं की जा सकी।
काम के बदले अनाज योजना में करोड़ों के खाद्यान्न घोटले का मामला एक साल पहले विधानसभा में उठा तो सरकार ने तीसरी बार तत्कालीन कलेक्टर राहुल जैन से जांच कराई। तत्कालीन कलेक्टर ने छह सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर जनपदवार जांच कराई। भोपाल भेजी गई जांच रिपोर्ट में नागरिक आपूर्ति निगम से लेकर सहकारी समितियों, जिला पंचायत, जनपद और पंचायत सहित अन्य एजेसियों के सैकड़ों लोग दोषी पाए गए। बावजूद जिम्मेदारों की जवाबदेही तय नहीं की जा रही है। जांच रिपोर्ट फाइनल होने के बाद भोपाल भेज दी गई है। मामला ठंडे बस्ते में चला गया है।
जिले में एसजीएसवायी खाद्यान्न घोटाला के मामले में कई रसूखदारों का नाम शामिल हैं। जिससे कार्रवाई प्रभावित हो रही है। मामले में कई अफसरा और नेताओं के नाम भी जुड़े होने से फाइल भोपाल में दबा दी गई। कार्यालय सूत्रों के अनुसार फाइनल जांच होने के बाद मामला ईओडब्ल्यू के पास पहुंच गया। लेकिन अभी तक किसी तरह की कार्रवाई शुरू नहीं की गई है।