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कैंसर से जीती जंग, अब औरों के लिए बने उम्मीद की किरण

आठ कैंसर रोगियों की कहानियां, कै से हारी बीमारी, कैसे जीता हौंसला

रीवाJun 03, 2018 / 12:31 pm

Dilip Patel

Victory from cancer, now the ray of hope for others

Victory from cancer, now the ray of hope for others

रीवा. कैंसर, तीन अक्षरों का ये शब्द है। बहुत ही डरावना है। परिवार बिखर जाते हैं। कर्ज में डूब जाते हैं। आर्थिक संकट से उबर नहीं पाते हैं। यह बीमारी होते ही आम आदमी यही महसूस करता है कि मानो अब जिंदगी खत्म हो गई। पर ऐसा है नहीं। अगर हौंसले बुलंद हो और मन में मुकाबले की हिम्मत हो तो इसे हराया जा सकता है। बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने समय पर उपचार कराया और कैंसर पर जीत हासिल की है। कैंसर सर्वाइवर डे…पर हम विंध्य के ऐसे ही लोगों की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने न केवल कैंसर से जंग जीती है बल्कि कैंसर रोगियों के लिए आज प्रेरणा के स्रोत हैं।
मेरी आराधना सफल हो गई
संजय गांधी अस्पताल रीवा की 45 वर्षीय स्टॉफ नर्स अर्चना द्विवेदी बताती हैं कि 2011 की बात है। पेट में जबरदस्त दर्द था। जांच कराई तो पता चला कि ओवरी का कैंसर है। डॉ. बीनू कुशवाह ने आपरेशन किया। इसके बाद इंदौर में कई महीने कीमोथैरेपी ली। एक साल से अधिक समय हो गया है। पूरी तरह स्वस्थ हूं। नौकरी की कमाई से बीमारी का इलाज संभव नहीं था। मेरे पति, बहन और भाई ने आर्थिक मदद की। कोई 8 लाख रुपए खर्च हुआ होगा। अब मै स्वस्थ हूं और अस्पताल में स्टॉफ नर्स की ड्यूटी पहले की तरह कर रही हूं। दो बेटियां हैं उनका लालन-पालन भी मैं ही करती हूं। अर्चना ने कहा कि सात साल की उम्र से मैं भगवान कृष्ण की दीवानी हूं। बीमारी के दौरान भी मै नियमित अराधना करती थी। कृष्ण भक्ति पर कई किताबें लिखीं। मेरी आराधना ने हौंसला बढ़ाया।
बेटों ने छोड़ी पढ़ाई, कराया इलाज
सिंगरौली के करथुआ के रहने वाले गोविंद प्रसाद साकेत को अपने बेटों पर गर्व है। वह बताते हैं कि 2015 में उन्हें पता चला था कि वह ब्लड कैंसर के मरीज हैं। जिसके बाद दो बेटे क पूर चंद्र और सुभाष चंद्र ने पढ़ाई छोड़ मेरा इलाज कराया। उस वक्त वह नौंवी में पढ़ते थे। मजदूरी में पलने वाले परिवार के लिए कैंसर के इलाज के लिए मजदूरी से ही पैसे जुटते थे। सीधी, मिर्जापुर, इलाहाबाद में दिखाया। मिर्जापुर के डॉक्टर ने रीवा संजय गांधी अस्पताल भेजा। अस्पताल की कैंसर यूनिट में उपचार शुरू हुआ। एक साल से स्वस्थ हूं। अब घर के काम भी करता हूं। बेटों के साथ परिवार के भरण पोषण में हाथ बंटाता हूं। एक बेटे और एक बेटी को अब पढ़ा भी रहा हूं। इलाज में कोई 3 लाख रुपए खर्च हुए। गांव के एक साथी से 1 लाख 70 हजार कर्ज लिया था। बीमारी ठीक होने के बाद से कर्जा चुका रहा हूं।
21 साल से जी रही हूं स्वस्थ जिंदगी
सतना जिले की मैहर तहसील की रहने वाली 68 वर्षीय रामवती शुक्ला 21 साल से स्वस्थ जिंदगी जी रही हैं। उन्होंने कैंसर से डटकर मुकाबला किया है। वह बताती हैं कि उन्हें बच्चेदानी का कैंसर था। 1991 में पता चला था। उसी वक्त पति भी गंभीर बीमारी से गुजर रहे थे। ऐसे में इलाज मुश्किल था। पति शिक्षक थे, जो कमाते थे उसी से दवाएं आती थी। जबलपुर कैंसर हॉस्पिटल में उस वक्त डॉ. पुष्पा किरार ने आपरेशन किया। 4 लाख रुपए उपचार में खर्च हुए। पति ने बीते महीने जिंदगी का साथ छोड़ दिया है। पर उनके हौंसले और हर कदम साथ देने की वजह से कैंसर से जीती हूं। कैंसर रोगियों के परिवार से कहना चाहती हूं कि अपनों का साथ बीमारी के वक्त न छोड़े, उन्हें डिप्रेशन में न आने दें।
इलाज कराने में हो गए कर्जदार
सतना जिले के तुर्की गांव की दूजी बाई साकेत, जिन्हें स्तन कैंसर था। मजदूरी में पलने वाले परिवार को जब पता चला तो घर की खुशियां छिन गई। तीन साल पहले की बात है। पति दशरथ साकेत ने उम्मीद बढ़ाई। कहा डरो नहीं इलाज कराएंगे। संजय गांधी अस्पताल के सर्जरी विभाग में दिखाया। प्राथमिक जांच के बाद कैंसर यूनिट में उपचार शुरू हुआ। करीब दो लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। बीते छह माह से पूरी तरह स्वस्थ हूं। इलाज के लिए नाते-रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा। जमीन बेचने की नौबत तो नहीं आई। लेकिन कर्जा बहुत हो गया है। वह कहती है कि बीमारी होने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। नियमित इलाज कराने से कैंसर को हराया जा सकता है।
तंबाकू छोड़ी, अब जी रहे जीवन
बैकुंठपुर निवासी पेशे से सहायक शिक्षक जगदीश प्रसाद सोनी कभी तंबाकू के बहुत शौकीन थे। बीड़ी पीने को शान समझते थे। 2006 में बीमार पड़े तो जांच कराई। गले का कैंसर सामने आया। पूरा परिवार भयभीत हो गया था। खुशियां तो बची ही नहीं थी। हर वक्त बीमारी का जिक्र। बोलने में परेशानी होती थी लेकिन मैने हिम्मत नहीं हारी। जबलपुर कैंसर हॉस्पिटल में डॉ. पुष्पा किरार को दिखाया। दवाएं शुरू हुई। डॉक्टर की सलाह पर नियमित इलाज कराया। तीन साल बाद कैंसर को हराकर दम लिया। अब स्वस्थ जीवन जी रहा हूं। बीमारी का असर परिवार के सपनों पर जरूर पड़ा है। बच्चों को जो बनाने और पढ़ाने की चाहत थी वह अधूरी रह गई। इलाज में 5 से 6 लाख खर्च हुआ। जिससे आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई थी। वह कहते हैं कि मैने तंबाकू छोड़ दी है और यही सलाह देता हूं कि इससे दूर ही रहें।
पत्नी ने संभाली दुकान, कराया इलाज
चोरहटा के 62 वर्षीय श्याम करन दुबे को गले के कैंसर की जानकारी हुई तो परिवार के भरण पोषण का संकट आ गया। चाय की गुमटी से गुजर बसर करने वाले परिवार के सामने इलाज की बेबसी थी। ऐसे में पत्नी ने गुमटी संभाली। एक लड़के और दो लड़कियों की परवरिश के साथ उपचार कराया। गनीमत रही कि कैंसर का पता प्रथम स्टेज पर चल गया जिससे महज 75 हजार रुपए के खर्च पर रोग से मुक्ति मिल गई। तीन महीने से स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। संजय गांधी अस्पताल की कैंसर यूनिट के डॉक्टरों ने अब कामकाज करने की इजाजत भी दे दी है। कहना चाहूंगा कि कैंसर रोग के लक्षण दिखें तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। ठीक होने के अवसर रहेंगे।
नियमित कीमोथैरेपी से लौंटी खुशियां
बच्चेदानी के कैंसर की शिकार रमा सिंह कहती हैं कि नियमित कीमोथैरेपी कराना लाभदायक रहा। कमला नेहरू अस्पताल इलाहाबाद में आपरेशन हुआ था। डॉक्टर ने कहा था कि कीमोथैरेपी करा ली तो कैंसर से मुक्ति मिल जाएगी। गंगेव बसौली-१ निवासी रमा ने कहा कि परिवार ने मेरा साथ हर पल दिया। दो लाख रुपए खर्च की बात तो नहीं थी पर हौंसला बढ़ाने वालों की जरूरत थी। मुझे डिपे्रशन में नहीं जाने दिया गया जिससे कैंसर जैसी बीमारी से जीत सकी हूं। कहना चाहूंगी कि उपचार में लापरवाही न बरतें।
पानी तक नहीं पी पाते थे
फोर्ट रोड निवासी राम आसरे सोनी ने बताया कि गले का कैंसर इतना भयानक था कि वह पानी तक नहीं पी पाते थे। सात माह तक इलाज नागपुर और रीवा में हुआ। तीन महीने पहले डॉक्टर ने कहा है कि अब स्वस्थ हो। पानी भी पीता हूं और बोल भी लेता हूं। धीरे-धीरे सामान्य जिंदगी फिर लौट रही है। उन्होंने बताया कि इलाज में खर्च भी ज्यादा नहीं हुआ। डेढ़ लाख रुपए में रोग से छुटकारा मिल गया है। अब फालोअप में केवल दिखाते हैं। वह कहते हैं कि बीमारी को अपने ऊपर कभी हावी न होने दें। उपचार और आदतों में सुधार ही बीमारी से जीत दिलाती हैं।
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