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रीवा

विंध्य भूमि में 39 साल बाद सफेद बाघों की विरासत लेकर लौटी थी पट्टू

– मुकुंदपुर में नया नामकरण विंध्या के रूप में किया गया, खुशियां लेकर आई थी और गई तो भावुक कर गई

रीवाMay 10, 2023 / 01:01 pm

Mrigendra Singh

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रीवा। विंध्य की पहचान सफेद बाघों की धरती के रूप में होती है। यहां पले-बढ़े पहले सफेद बाघ मोहन के वंशज दुनियाभर में गए और आकर्षण बने। मोहन के वंशज विराट नाम के बाघ ने वर्ष 1976 में गोविंदगढ़ में अंतिम सांस ली थी। इसके साथ ही सफेद बाघों की मौजूदगी विंध्य में समाप्त हो गई थी। लंबे समय तक लोग मांग उठाते रहे कि यहां पर सफेद बाघ वापस लाए जाएं। संरक्षित वन्यप्राणी होने की वजह से जंगल में भी नहीं छोड़ा जा सकता था और उसे रखने के लिए कोई माकूल इंतजाम भी नहीं था। इसी कारण लंबे समय तक विंध्य की भूमि सफेद बाघों से खाली रही।
सरकार ने मुकुंदपुर में चिडिय़ाघर और ह्वाइट टाइगर सफारी की स्थापना की। जिससे सफेद बाघों की वापसी का रास्ता खुल गया। नौ नवंबर 2015 को भोपाल के वन विहार से पट्टू नाम की बाघिन को मुकुंदपुर लाया गया। इसका जन्म 21 जुलाई 2007 को दिल्ली के चिडिय़ाघर में हुआ था। करीब डेढ़ वर्ष तक यह भोपाल में रही इसके बाद मुकुंदपुर लाया गया। सफेद बाघ मोहन के वंशज की वापसी विंध्य में हुई थी, इसलिए लोगों की भावनाओं से जोडऩे के लिए इसका नाम पट्टू से बदलकर विंध्या कर दिया गया। तब से ह्वाइट टाइगर सफारी की प्रतीक के रूप में विंध्या को देखने लोग पहुंचते रहे। इसके बाद बिलासपुर से सफेद बाघों का जोड़ा लाया गया। फिर भी विंध्या का ही लोगों के बीच आकर्षण सबसे अधिक रहा।
करीब साढ़े सात साल तक मुकुंदपुर में रही विंध्या लोगों की भावनाओं से जुड़ गई थी। नजदीक से उसे देखकर लोग खुद को गौरवांवित महसूस कर रहे थे, उन्हें खोई विरासत मिलने का भाव मिलता रहा है। सुबह जैसे ही विंध्या के मौत की खबर आई, सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी भावनाएं जाहिर करते हुए दु:ख व्यक्त किया है।
– विंध्या के आने के बाद बढ़ा था गौरव
विंध्या जब से मुकुंदपुर आई तब से इस अंचल का गौरव बढ़ा था। वर्ष 2017 में दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में सफेद बाघों को गौरव के रूप में प्रदर्शित करते हुए मध्यप्रदेश की ओर झांकी निकाली गई थी। इसी साल भोपाल सहित विंध्य के दस जिलों में भी सफेद बाघों की झांकी प्रदर्शित हुई थी, जिसमें प्रतीक के रूप में विंध्या को ही प्रदर्शित किया गया था। इसे प्रदेश सरकार ने सरकारी कैलेंडर में भी स्थान दिया था। इसके अलावा पर्यटन एवं अन्य विभागों ने ब्रांडिंग के तौर पर विंध्या की तस्वीरें देश के कई हिस्सों में प्रदर्शित कर रखी है। प्रयागराज के सिंहस्थ मेले में भी विंध्या की तस्वीरें लगाई गई थी। ऐसे कई अवसर आए हैं जब विंध्या की वजह से पूरे विंध्य अंचल का नाम रोशन हुआ है।

अब दो सफेद बाघ मुकुंदपुर में बचे
मुकुंदपुर में अब तक तीन सफेद बाघों की मौत हो चुकी है। विंध्या से पहले छह दिसंबर २०१६ को राधा नाम की बाघिन पर बंगाल टाइगर नकुल ने हमला कर दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं २३ दिसंबर २०२० को सफेद बाघ गोपी की मौत हो गई थी। इन तीन मौतों के बाद चिडिय़ाघर में दो ही सफेद बाघ बचे हैं। जिसमें नर रघु और मादा सोनम शामिल हैं।

– हिन्दू रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार
सफेद बाघिन विंध्या का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार किया गया। सेंट्रल जू अथारिटी द्वारा निर्धारित प्रोटोकाल के अनुसार पार्थिव शव को अग्रि देकर अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान विभाग की ओर से सीसीएफ राजेश राय, सतना डीएफओ विपिन पटेल, जू संचालक यशपाल मेहरा, डॉ. राजेश सिंह तोमर, क्यूरेटर बीनू सिंह बघेल सहित अन्य मौजूद रहे।
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सफेद बाघों से जुड़े कुछ अहम तथ्य
– 27 मई 1951 को सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा से पकड़कर गोविंदगढ़ लाया गया।
– 1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें एक भी सफेद शावक नहीं पैदा हुए।
– 30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा नाम की बाघिन ने चार शावक जन्मे, जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया।
– 19 वर्षों तक जिंदा रहे तीन मादाओं के साथ मोहन के संसर्ग से गोविंदगढ़ में लगातार सफेद शावक पैदा होते गए। मोहन से कुल 34 शावक जन्मे, जिसमें 21 सफेद थे। इसमें 14 राधा नाम की बाघिन के थे।
– गोविंदगढ़ किले में 6 सितंबर 1967 को मोहन और सुकेशी से चमेली जन्मी और 17 नवंबर 1967 को विराट नाम का सफेद शावक जन्मा।
– 1972 में मोहन की मौत के बाद सुकेशी नाम की बाघिन को दिल्ली के चिडिय़ाघर भेजा गया।
– 1973 में चमेली को लेकर मोहन के केयर टेकर पुलुआ बैरिया(अब स्वर्गीय) को भी दिल्ली बुला लिया गया। 2003 तक दिल्ली के चिडिय़ाघर में उन्होंने सेवाएं दीं।
– 8 जुलाई 1976 को रीवा में आखिरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मौत हो गई।
– 9 नवंबर 2015 को भोपाल के वन विहार से विंध्या को मुकुंदपुर लाया गया।
– ह्वाइट टाइगर सफारी में विंध्या से पहले राधा और गोपी की मौत हो चुकी है। यह भी सफेद बाघिन और बाघ थे।
– 9 मई 2023 को विंध्या की मौत हो गई।
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पिछले करीब डेढ़ वर्ष से विंध्या को शारीरिक तकलीफ थी। चिकित्सा टीम लगातार निगरानी करती रही। कई दिनों से उसने खाना भी बंद कर रखा था। उपचार के दौरान उसकी मौत हुई है। मुकुंदपुर जू की पहली वन्यप्राणी थी।
राजेश राय, सीसीएफ रीवा
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विंध्या उम्रदराज हो चुकी थी, इसलिए लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थी। उसने सफारी में हम सबको काफी रोमांचित किया था। वह हम सबकी स्मृतियों में हमेशा जीवंत रहेगी।
राजेन्द्र शुक्ला, विधायक रीवा
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विंध्या परिवार के सदस्य की तरह रही है। निधन की खबर से हम सब शोकाकुल हैं। साथ ही हमने प्रधानमंत्री से भी निवेदन किया है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और सेंपल मंगवाकर जांच करवा लें। जेनेटिक रिसेसंस का भी पता लगाना जरूरी है, क्योंकि समय से पहले बाघों की मौतें चिंता का विषय हैं।
पुष्पराज सिंह, पूर्व मंत्री
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क्षेत्रीय लोगों के बढ़ते दबाव की वजह से सरकार ने चिडिय़ाघर और ह्वाइट टाइगर सफारी स्थापित जरूर कर दिया लेकिन उसका रखरखाव ठीक से नहीं हो पा रहा है। इसके पहले भी लगातार बाघों की मौतें हुई हैं। इस मौत पर उच्च स्तरीय जांच होना चाहिए।
गुरमीत सिंह मंगू, प्रदेश महासचिव कांग्रेस
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सफेद बाघों की विंध्य में मौजूदगी गौरवांवित करने वाली थी। जब भी सफारी में विंध्या को खुले जंगल में विचरण करते देखता था, गौरव महसूस होता था। अब निधन की खबर ने मन को आहत कर दिया।
सर्वेश सोनी, वन्यप्राणी प्रेमी
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मुकुंदपुर में सफेद बाघों के साथ ही अन्य प्रजाति के वन्यप्राणी हैं लेकिन जो भावनात्मक लगाव विंध्या से रहा वह यादगार रहेगा। निधन की सूचना मिली है। मुकुंदपुर सफारी एवं जू की पहचान विंध्या बन चुकी थी।
संजय रायखेरे, पूर्व डायरेक्टर मुकुंदपुर जू
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