सुंदरजा आम की यह पहचान आगे भी बनी रहे, इसके लिए उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से लेकर कृषि वैज्ञानिकों तक की टीम कोशिश में लगी है। सुंदरजा सैक्स पॉवर बढ़ाने के लिए जाना जाता है। रियासत काल में राजघराने के महाराजा इसे खासतौर पर पसंद किया करते थे।
स्वाद व सुगंध में नायाब है सुंदरजा
देश-विदेश में मशहूर हो चुके सुंदरजा की उपज दिन ब दिन कम होती जा रही है। वजह लगातार पेड़ों की घटती संख्या और नए पेड़ों का तैयार नहीं हो पाना है। पूर्व पेड़ों की तुलना में अब के पेड़ों में लगने वाले आम के फलों की सुगंध व स्वाद में अंतर आना भी अधिकारियों की समझ से परे साबित हो रहा है। वैज्ञानिक इसे गोविंदगढ़ की मिट्टी का कमाल मान रहे हैं।
केवल गोविंदगढ़ के आम में रहता स्वाद
सुगंध और स्वाद के दम पर सुंदरजा आम की पहचान गोविंदगढ़ के किला परिसर में स्थित बागान से बनी। किस्म के प्रसार के उद्देश्य से कुठुलिया के बाग में भी सुंदरजा के कलम लगाए गए। कुछ पौधे तैयार तो हुए लेकिन उनमें वह सुगंध व स्वाद नहीं, जो गोविंदगढ़ बाग के पेड़ों के फल में होते हैं। देखने मात्र से दोनों जगह के आम की पहचान हो जाती है। गोविंदगढ़ के बाग का सुंदरजा हल्की सफेदी लिए होता है, जबकि कुठुलिया बाग के सुंदरजा आम में हरापन ज्यादा होता है।
गोविंदगढ़ की मिट्टी में है कुछ खास
कलम के जरिए अब तक कई पौधों का रोपण करा चुके उद्यानिकी विभाग के अधिकारी व कृषि वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि उनकी ओर से कलम व बीज के जरिए तैयार किए गए सुंदरजा किस्म के आमों में वह गुणवत्ता नहीं मिल रहा है, जो गोविंदगढ़ के बाग के आमों में है। अधिकारी व वैज्ञानिक दोनों इसे गोविंदगढ़ की मिट्टी का कमाल मान रहे हैं, क्योंकि दूसरे क्षेत्रों में तैयार पौधों के फलों में न ही वह सुंगध व स्वाद है और न ही वह साइज है।
पहले थी महाराजाओं की पसंद, अब विदेशों तक पहुंच
गोविंदगढ़ के किला परिसर में तैयार आम का बाग व सुंदरजा के पौधे राजघराने की देन है। सुंदरजा किस्म का आम महाराजाओं की खास पसंद में शामिल रहा है। अब इसकी मांग विदेशों तक में है। सुंदरजा के थोक विक्रेता संतोष कुमार गुप्ता की माने तो आम की सप्लाई फ्रांस जैसे कई दूसरे देशों तक होती है। इसके अलावा दिल्ली, छत्तीसगढ़ व गुजरात के कई व्यापारी एडवांक बुकिंग करा लेते हैं।