ईको-सिस्टम हो गया धराशाही
डॉ. हरि सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वनस्पतिशास्त्री डॉ. अजय शंकर मिश्रा ने बताया कि पडऱई का वृक्ष काफी पुराना है और करीब दो एकड़ में फैला है। इसके कारण इसका अपना एक ईको सिस्टम तैयार हो जाता है। हजारों पक्षियों व लाखों-करोड़ों कीटों को ये अपने में समाए रहा होगा। आग लगने से ईको सिस्टम भी ध्वस्त हुआ होगा।
पुनर्जीवित हो जाएगा वृक्ष
डॉ. मिश्रा ने बताया कि बरगद के पेड़ (फिकस बेंघालेंसिस) की खासियत यह है कि वह कभी भी मर नहीं सकता है। यह वृक्ष मोरेसी परिवार का मेंबर है। इनमें दूध होता है, जिसके कारण इनके बचाव का सिस्टम भी अलग होता है।
हजारों लोग पहुंचते थे वृक्ष देखने
ग्रामीणों की माने तो यह वृक्ष जिले के साथ पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है, जिसके कारण यहां पर साल भर में हजारों लोग वृक्ष देखने के लिए पहुंचते हैं। दो साल पुराना वृक्ष होने के कारण लोग धार्मिक दृष्टि से भी इसको महत्वपूर्ण मानते हैं और इसके आसपास कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।