सात फेरियों से गजरथ महोत्सव का समापन, बीना अतिशय क्षेत्र में 30 साल बाद हुआ पंचकल्याणक,
सागर•Mar 11, 2019 / 01:21 am•
नितिन सदाफल
कैलाश से प्रभु का मोक्ष की ओर हुआ गमन
देवरी कलां. आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के आशीर्वाद से ससंघ सानिध्य में अतिशय क्षेत्र बीनाजी में दूसरी बार हुए पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव में हजारों भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सात फेरियों के साथ पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का समापन हुआ और प्रभु का मोक्ष की ओर गमन हुआ। इस पूरे आयोजन में 100 प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया गयाजिन्हेंजबलपुर, हर्रई, केवलारी, महराजपुर, केसली, बंगलोर, देवरी के विभिन्न जैन मंदिरों में स्थापित किया जाएगा।
बीना जी में 4 से 10 मार्च तक हुए पंचकल्याणक महोत्सव में रविवार को गजरथ फेरी के साथ पंचकल्याणक का समापन हो गया। बीना कमेटी के अध्यक्ष अलकेश जैन कोयला वाले ने बताया कि सात दिवसीय इस कार्यक्रम में पाषाण से भगवान बनने की प्रक्रिया हुई। जो गर्भ कल्याणक से शुरू होकर और मोक्ष कल्याणक के रूप तक हुई। सुबह 8:10 पर कैलाश पर्वत से भगवान का मोक्ष गमन हुआ। प्रभु हमेशा हमेशा को हमसे विदा हो गए। मोक्ष कल्याणक के बाद भगवान की शांतिधारा करने का सौभाग्य सभी इंद्र इअंद्राणी को मिला। मोक्ष कल्याणक के बाद दोपहर 1:30 बजे से प्रतिष्ठाचार्य ब्रा. विनय भैया बंडा के निर्देशन में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ स में गजरथ फेरी शुरू हुई। सात फेरियों में सबसे आगे हाथी, उसके बाद मुनिसंघ फिर आर्यिका संघ, ब्रह्मचारिणी बहनें, ब्रह्मचारी भैया लगभग 1000 से अधिक इंद्र इंद्राणी के बाद रथों पर सवार इंद्र और प्रमुख पात्र बैठे थे। स्वर्ण रथ में सौधर्म इन्द्र अजय पारस परिवार चल रहा था। सभी प्रमुख पदाधिकारी पात्र रथ में सवार थे। इस दौरान कुछ अन्य रथ भी थे, जिन्हें ट्रैक्टरों से खींचा गया।
पंचकल्याणक महोत्सव में मोक्ष कल्याणक के अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर महराज ने कहा कि भगवान को आज आजादी की प्राप्ती हुई और उन्हें मोक्ष हुआ। स्वतंत्रता का अर्थ है स्व तंत्र स्व की जहां मुख्यता हैं। अभी हम परतंत्र है, हम सभी भावना भाएं की हमें भी निर्वाण की प्राप्ति हो। रविवार की सुबह समापन के दौरान पात्र शुद्धि अभिषेक, शांतिधारा, नृत्यमय पूजन, प्रभु का मोक्षमन, मोक्ष कल्याणक पूजन, आचार्य श्री पूजन, मुनिश्री के आशीर्वचन आदि हुआ।
पाषाण से परमात्मा बनाने की पद्धति पंचकल्याण
पाषाण से परमात्मा बनाने की पद्धति का नाम पंचकल्याण है। पांच ऐसी घटनाएं हैंए जिनके द्वारा जीवों का कल्याण होता है उसे ही पंचकल्याण कहा जाता है। ये वो घटनाएं हैं गर्भए जन्मए तपए ज्ञान और मोक्ष। ऐसा पुण्यशाली जीव जिसके गर्भ में आते ही जीवों का कल्याण होने लगता है उसे गर्भ कल्याण कहते हैं। उस जीव से तीनों लोकों का कल्याण होता है। जन्म कल्याणक वह कल्याणक होता हैए जिससे तीनों लोक आंददित हो उठते हैं। मानव समाज बैरभाव मिटाकर एक हो जाता है। हर जगह आनंद ही आनंद होता है। इसके बाद तप कल्याण आता हैए जिसमें मोक्ष की जाने के साधन एवं धार्मिक वातावरण के लिए कार्य किया जाता है। ज्ञान कल्याण का अर्थ होता है तीनों लोकों में ज्ञान झलकता हो। ज्ञान कल्याणक तत्वों को प्रतिवादित करता है। केवल ज्ञान होने के बाद भी समोशरण की रचना होती है। जिसमें एक साथ सभी लोग बैठते हैं। इसके बाद ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।