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सागर

ऐसे ही चलता रहा रेत का अवैध उत्खनन तो बूंद—बूंद पानी को तरस जाएंगे शहरवासी

बोट मशीनों से निकाल रहे नदी के अंदर से हजारों ट्रॉली रेत

सागरMar 04, 2019 / 09:23 pm

sachendra tiwari

kind illegal quarrying of the sand the city will craving for the water

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बीना. नदियों में हो रहे अवैध रेत उत्खनन से राजस्व को तो हानि हो ही रही है वहीं दूसरी ओर उत्खनन से नदी सूख भी सकती है, जिससे गर्मियों में जलसंकट गहरा सकता है। इसके बाद भी इस ओर अधिकारी गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। यदि समय रहते अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगाई गई तो पूरा क्षेत्र पानी के लिए परेशान होगा।
नगर और रेलवे में बीना नदी से पानी की सप्लाई होती है। शहर के ७० हजार लोगों सहित रेलवे के लोगों की प्यास यही नदी बुझा रही है, लेकिन अवैध रेत उत्खनन के कारण इस नदी का अस्तित्व ही खतरे में नजर आ रहा है। बीना नदी ज्यादा बड़ी न होने के कारण इसमें बारिश का पानी ही रहता है जो लोगों के घरों तक सप्लाई होता है। इस नदी में ऐरन के पास बोट डालकर पानी के अंदर से रेत निकाली जा रही है, जिससे वहां गड्ढे बन रहे हैं और नदी की सतह भी निकल सकती है। चार बोटों से हजारों ट्रॉली रेत यहां निकल रही है। अवैध उत्खनन से नदी जलस्तर खिसक रहा है और भीषण गर्मी आते-आते नदी सूख भी सकती है, जिससे शहरवासी बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे। रेत निकलने के बाद नदी की सतह निकल आएगी और पानी जमीन में चला जाएगा। रेत से नदी में जल संग्रहण भी होता है और पानी को लंबे समय तक रोके हुए रखती है।
बेतवा नदी भी हो रही छलनी
बीना नदी के साथ बेतवा नदि से भी जमकर रेत उत्खनन किया जा रहा है। जिससे इन नदी पर निर्भर ग्रामीण भी गर्मियों में पानी के लिए परेशान होंगे। बेतवा नदी में भी करीब छह बोट मशीन डालकर उत्खनन किया जा रहा है। इसके बाद भी जिम्मेदार अशिकारी सिर्फ कार्रवाई के नाम पर रस्मअदायगी कर रहे हैं।
रेत उत्खनन से घटता है जलस्तर
अवैध रेत उत्खनन से भू-जल प्रदूषित होता है। साथ ही रेत नदी में पानी को रोकती है और रेत निकलने से जलस्तर गिर जाता है। रेत पानी फिल्टर भी करती है और फिल्टर पानी जमीन में जाता है, लेकिन रेत निकलने से प्रदूषित पानी ही जमीन में जाएगा। रेत से नदी में यदि पानी संग्रह करने की क्षमता एक वर्ग मीटर में एक हजार लीटर है तो रेत निकलने से यह क्षमता बहुत कम हो जाएगी। उत्खनन से पुरातत्व संपदा की नींव कमजोर होने से वह गिर सकती है।
विक्रांत तोगट, पर्यावरणविद, नोएडा

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