खुशीपुरा गांव हमेशा से उपेक्षा का शिकार रहा है। यहां ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं तक के लिए जनप्रतिनिधि और अधिकारियों का मुंह ताकते थे। पांच सौ की आबादी वाले इस गांव के रोजगार सहायक सत्यनारायण पराशर बताते हैं कि ज्यादातर ग्रामीण मजदूरी कर जीवन-यापन करते हैं। उनके पास न तो स्वयं की जमीन है और न ही पक्का मकान।
अलग-अलग मकानों को एक साथ किया
प्रधानमंत्री आवास योजना में ग्रामीणों को उनकी जमीन पर ही मकान बनाने के लिए शासन की ओर से धनराशि मिलती है, लेकिन यहां एक साथ 68 मकान इसलिए बनाए जा रहे हैं क्योंकि ग्रामीणों ने अपने मौजूद घरोंदों को गिरा दिया था। जिसके बाद सीइओ नागर ने पूरी प्लानिंग की और एक साथ ही 68 आवास स्वीकृत करा दिए।
&मेरा उद्देश्य खुशीपुरा गांव की तस्वीर बदलने का है। आने वाले समय में गांव में वे सब सुविधाएं होंगी, जो एक आदर्श गांव में होती हैं। इसमें मुझे सभी अधिकारियों का भी बहुत सहयोग मिला है।
-अंजना नागर, जपं सीइओ, केसली