जिसके जवाब में दारुल उलूम देवबंद से जारी हुए फतवे में कहा गया है कि ढोल-बाजा व मर्दे औरतों का एक साथ बारात में जाना शरीयत इस्लाम में नाजायज है। इससे बचना वाजिब है वरना सख्त गुनेहगार होंगे। साथ ही फतवे में कहा गया है कि अगर दुल्हन को रुखसत कराकर लाने के लिए जाना हो तो दुल्हे के साथ घर के दो या तीन लोग चले जाएं काफी हैं। जामिया फातिमा ज़ोहरा एंग्लो अरबिक के.मोहतमिम मौलाना लूतफुर्रहमान सादिक़ क़ासमी ने दारुल उलूम से जारी फतवे पर रोशनी डालते हुए कहा कि शरीयत ए मुहम्मदिया में बारात का ही कोई तसव्वुर नहीं है। बारात में काफी तादाद में औरतों मर्दों को ले जाने की कोई नजीर मोहम्मद साहब की जिंदगी से नहीं मिलती है। आज के जमाने में जो बारात की शकल है वह दूसरे धर्म के लोगों से मुतास्सिर है।