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मूक बधिर बच्चों के जीवन में नई उम्मीद जगा रही ये महिला

locationसहारनपुरPublished: Jan 29, 2018 10:11:13 am

Submitted by:

lokesh verma

पिछले 25 वर्षों से स्पेशल चाइल्ड के लिए काम कर रही डॉ. रेखा

Saharanpur
सहारनपुर. मूक बधिर या स्पेशल चाइल्ड कह लीजिए। ये बच्चे हमें भले ही कम बुद्धि वाले लगते हों, लेकिन इनकी प्रतिभा का कोई सानी नहीं है। आवश्यकता है तो बस उस प्रतिभा को पहचानने की। इन बच्चों से प्रेम करने की और उस प्रतिभा को निखारने की। स्पेशल चाइल्ड से आप जितना प्यार करेंगे बदले में आपको इनसे कई गुना प्यार मिलेगा और जब यह बच्चे मुस्कुराते हैं तो उस समय दिल को जो आनंद की अनुभूति होती है वह अतुलनीय है।
यह कहना है सहारनपुर की रहने वाली डॉक्टर रेखा का। डॉ. रेखा पिछले 25 वर्षों से स्पेशल चाइल्ड के लिए काम कर रही हैं। इनकी संकल्प नाम की एक संस्था भी है और इस संस्था के जरिए वह इन स्पेशल चाइल्ड के जीवन को सुधारने का प्रयास करती हैं। संकल्प संस्था में ऐसे स्पेशल बच्चों को पढ़ाया जाता है और उनकी कला को पहचानने की कोशिश की जाती है। इसके बाद उस कला को निखारा जाता है। अपने 25 वर्षों के सफर में डॉक्टर रेखा सैकड़ों स्पेशल चाइल्ड का जीवन बदल चुकी हैं और उनके चेहरे पर मुस्कान ला चुकी हैं। इन बच्चों के अभिभावक जो कल तक यह समझते थे कि उनके बच्चे कुछ नहीं कर सकते, उनको आज विश्वास नहीं होता कि उनके बच्चे सब कुछ कर सकते हैं। इतना ही नहीं इसके साथ-साथ वे वह भी कर सकते हैं जो साधारण बच्चे भी नहीं कर पाते। कई ऐसे उदाहरण हैं जब अभिभावक अपने बच्चों को बोझ समझ बैठे थे और उन्होंने सोच लिया था कि उनके बच्चों का अब कुछ भी नहीं होने वाला है, लेकिन फिर उन्हें संकल्प संस्था का रास्ता दिखाई दिया और यह सोच बदली। सिर्फ सोच ही नहीं बदली, बल्कि उन स्पेशल चाइल्ड का जीवन भी बदल गया।
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आप भी कर सकते हैं मदद

डॉ. रेखा के मुताबिक स्पेशल चाइल्ड की मदद कोई भी कर सकता है। अगर आपके आसपास भी स्पेशल चाइल्ड हैं तो आप उन्हें दया या घृणा का पात्र ना बनाएं उनकी कला को पहचाने उनसे प्रेम करें उनके साथ प्रेम से पेश आएं बातें करें, तो आप न केवल इन बच्चों की मदद करेंगे बल्कि आप यह समझ पाएंगे कि यह बच्चे वाकई स्पेशल हैं।
जन्म के साथ ही पता लगाया जा सकता है इन बच्चों की विकलांगता का

डॉ. रेखा के मुताबिक मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों का पता जन्म के साथ ही लगाया जा सकता है। एक टेस्ट के जरिए इन बच्चों की मानसिक स्थिति का आंकलन किया जा सकता है और अगर समय रहते यह पता लगा लिया जाए तो इन बच्चों की काफी मदद की जा सकती है। इनकी शारीरिक और मानसिक विकलांगता को काफी हद तक खत्म भी किया जा सकता है। गर्भ के दौरान यदि मां का ख्याल रखा जाए तो काफी हद तक ऐसी स्थिति की आशंका को कम भी किया जा सकता है।
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