कहते है कि जिले के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद हो गए हैं या फिर डॉक्टरों की कमी का दंश झेल रहे हैं, लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिरसिंहपुर में समस्या होने के बाद भी मरीजों को प्रॉपर तरीके से उपचार मिलता है। सूत्रों की मानें तो आसपास के उप स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में भले उपचार न मिले लेकिन यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाता है।
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बताया गया कि बिरसिंहपुर अस्पताल 6 कमरों के सरकारी भवन में सीमित संसाधनों के बावजूद चल रहा है। वर्ष 2019 में अब तक यहां के स्टाफ ने 214 सुरक्षित प्रसव कराकर मिसाल पेश की है। विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों पर गौर करें तो यहां औसतन हर माह 180 से 200 के लगभग सुरक्षित प्रसव कराए जाते हैं। ओपीडी के आंकड़े भी बेहद चौकाने वाले हैं। यहां 380 से लेकर 450 मरीज रोज पहुंचते हैं, जो सामुदायिक और सिविल अस्पताल से कहीं ज्यादा हैं।
बताया गया कि बिरसिंहपुर अस्पताल 6 कमरों के सरकारी भवन में सीमित संसाधनों के बावजूद चल रहा है। वर्ष 2019 में अब तक यहां के स्टाफ ने 214 सुरक्षित प्रसव कराकर मिसाल पेश की है। विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों पर गौर करें तो यहां औसतन हर माह 180 से 200 के लगभग सुरक्षित प्रसव कराए जाते हैं। ओपीडी के आंकड़े भी बेहद चौकाने वाले हैं। यहां 380 से लेकर 450 मरीज रोज पहुंचते हैं, जो सामुदायिक और सिविल अस्पताल से कहीं ज्यादा हैं।
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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिरसिंहपुर की स्थापना 1958 में हुई थी। इस पर सभापुर और धारकुंडी थाना क्षेत्र के करीब 150 से ज्यादा गांवों का भार है। क्षेत्र के रिमारी, कारीगोही, पगार खुर्द, बैरहना सहित पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिरसिंहपुर कस्बे अंतर्गत शासन के निर्देशानुसार संचालित हैं। लेकिन, कारीगोही और बैरहना में डॉक्टरों की पदस्थापना होने के बाद भी मरीजों को उपचार नहीं मिल पाता है। ऐसे में सभी मरीज बिरसिंहपुर पहुंचते हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिरसिंहपुर की स्थापना 1958 में हुई थी। इस पर सभापुर और धारकुंडी थाना क्षेत्र के करीब 150 से ज्यादा गांवों का भार है। क्षेत्र के रिमारी, कारीगोही, पगार खुर्द, बैरहना सहित पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिरसिंहपुर कस्बे अंतर्गत शासन के निर्देशानुसार संचालित हैं। लेकिन, कारीगोही और बैरहना में डॉक्टरों की पदस्थापना होने के बाद भी मरीजों को उपचार नहीं मिल पाता है। ऐसे में सभी मरीज बिरसिंहपुर पहुंचते हैं।
टूटे पलंग, फटे बिस्तर, महिला चिकित्सक भी नहीं
विभागीय उदासीनता के कारण इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आज तक पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हो सके हैं। टूटे पलंग, फटे बिस्तर यहां की पहचान हैं। इसके बावजूद उत्कृष्ट कार्य के लिए पदस्थ डॉक्टरों का समय-समय पर सम्मान हुआ है। कारण, संसाधनों के अभाव में भी यहां का स्टाफ उपचार मरीजों के उपचार में तत्पर रहता है। हालात ऐसे हैं कि 61 साल बाद भी यहां महिला चिकित्सक नहीं है।
विभागीय उदासीनता के कारण इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आज तक पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हो सके हैं। टूटे पलंग, फटे बिस्तर यहां की पहचान हैं। इसके बावजूद उत्कृष्ट कार्य के लिए पदस्थ डॉक्टरों का समय-समय पर सम्मान हुआ है। कारण, संसाधनों के अभाव में भी यहां का स्टाफ उपचार मरीजों के उपचार में तत्पर रहता है। हालात ऐसे हैं कि 61 साल बाद भी यहां महिला चिकित्सक नहीं है।
एक नजर में जानिए स्वीकृत पद
बताया गया कि बिरसिंहपुर अस्पताल के लिए 4 डॉक्टरों के पद स्वीकृत है। जिसमे सिर्फ 2 चिकित्सकों की पदस्थापना है। इसी तरह आयुष चिकित्सक का एक पद है जो भरा हुआ है। वहीं नर्स के 8 पद है। जिसमे 4 खाली है। लैब टेक्नीशियन के 2 पदो में 1 खाली है। फार्मासिस्ट के 2 पद है जो 1 खाली है। वार्ड बाय के 4 पदों में 2 रिक्त है। स्वीपर के 2 पद में एक रिक्त है।
बताया गया कि बिरसिंहपुर अस्पताल के लिए 4 डॉक्टरों के पद स्वीकृत है। जिसमे सिर्फ 2 चिकित्सकों की पदस्थापना है। इसी तरह आयुष चिकित्सक का एक पद है जो भरा हुआ है। वहीं नर्स के 8 पद है। जिसमे 4 खाली है। लैब टेक्नीशियन के 2 पदो में 1 खाली है। फार्मासिस्ट के 2 पद है जो 1 खाली है। वार्ड बाय के 4 पदों में 2 रिक्त है। स्वीपर के 2 पद में एक रिक्त है।
स्टाफ की कमी है। प्रपोजल भेजा है। जल्द से जल्द और स्टाफ की व्यवस्था कराई जाएगी। अन्य समस्याओं के निराकरण पर ध्यान दिया जाएगा।
डॉ. अशोक अवधिया, सीएमएचओ
डॉ. अशोक अवधिया, सीएमएचओ