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सतना

बच्चों-लड़कियों को देंगे शहद और च्यवनप्राश, सरकार की बड़ी सौगात

शहद और च्यवनप्राश खरीदने के लिए माइनिंग फंड के तहत उपलब्ध होगी राशि, कुपोषण से लड़ेंगे जंग, महिला बाल विकास विभाग कुपोषण दूर करने आयुर्वेद की शरण में

सतनाDec 09, 2022 / 02:28 pm

deepak deewan

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माइनिंग फंड के तहत उपलब्ध होगी राशि

सतना. मध्यप्रदेश में अब छोटे बच्चों और किशोर लड़कियों को सरकारी खर्चे पर शहद और च्यवनप्राश खिलाया जाएगा. इसके लिए आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों के साथ ही गर्भवती माताओं को भी पुष्टाहार में आयुर्वेद के अनुसार पोषण देने की पहल की जा रही है। कुपोषण से जंग लड़ने के लिए ये कवायद की गई है। 6 साल तक के बच्चों, और 14 से 18 वर्ष तक की किशोरियों के साथ ही स्तनपान कराने वाली माताओं तथा गर्भवती स्त्रियों को भी दिए जाने वाले पुष्टाहार में आयुर्वेदिक खाद्य सामग्री च्यवनप्राश और वनीय शहद को शामिल किया गया है। इस संबंध में अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन ने कलेक्टरों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जिले में माइनिंग फंड के तहत उपलब्ध राशि से यह व्यवस्था करने को कहा गया है।
एमपी के मुख्यमंत्री ने आगामी एक साल में प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने की घोषणा की है। इसके तहत मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम के तहत चयनित गंभीर कुपोषित बच्चों का समुदाय व पोषण पुनर्वास केंद्र स्तर पर प्रबंधन किया जा रहा है। साथ ही उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं की पहचान कर समुचित उपचार कर कुपोषित बच्चे के जन्म को रोकने का काम महिला बाल विकास द्वारा स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से किया जा रहा है।
लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र ने बच्चों एवं महिलाओं को कुपोषण से बाहर लाने कई आयुर्वेदिक औषधियां बनाई हैं। इन औषधियों की सूची आयुक्त महिला बाल विकास विभाग को दी गई थीं। साथ ही इसमें से च्यवनप्राश और वनीय शहद की आपूर्ति आंगनबाड़ी केंद्रों में किए जाने का सुझाव दिया गया था।
सभी जिलों को दिए गए निर्देश: महिला बाल विकास विभाग की यूनिट अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के संचालक ने सभी कलेक्टरों को पत्र लिखकर च्यवनप्राश और शहद आंगनबाड़ियों में उपलब्ध कराने को कहा है। साथ ही इसके लिए डीएमएफ फंड से व्यवस्था करने कहा गया है।
वनवासियों को भी होगा फायदा
लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र अपनी दवाओं और उत्पादों के लिए लघु वनोपज संग्राहकों और स्व सहायता समूहों से कच्चा माल खरीदता है। ऐसे में अगर डिमांड बढ़ती है तो वनवासियों की वनोपज की भी मांग बढ़ेगी, जिससे उन्हें भी लाभ पहुंचेगा। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

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