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सतना

COMMENT: MP में आमजन की असुरक्षा पर बड़ा सवाल, आखिर कितने सुरक्षित है हम?

जिलेभर में आमजन की असुरक्षा बड़ा सवाल है। वारदातें गवाह हैं कि, हम कहीं सुरक्षित नहीं हैं।

सतनाJan 14, 2018 / 04:55 pm

suresh mishra

How we are safe in satna madhya pradesh

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शक्तिधर दुबे @ सतना। जिलेभर में आमजन की असुरक्षा बड़ा सवाल है। वारदातें गवाह हैं कि, हम कहीं सुरक्षित नहीं हैं। अपराधियों पर अंकुश के दावों पर भला कोई कैसे यकीन करे? जब बैंक के सामने ही लुटेरे वृद्ध दंपती को लूटकर फरार हो जाते हैं। पुलिस उन्हें फुटेज में तलाशती रह जाती है।
थानों के सामने आगजनी फैशन बन गया है। प्रदर्शन को हंगामाई बनाने के लिए शव का अपमान किसी की संवेदनाएं नहीं जगाता। जलते हुए टायरों की लपटों में कानून व्यवस्था झुलस कर रह जाती है।
पुलिस डरती है, हालात बिगड़ न जाएं। उसे बल और संसाधनों की कमी दिखाई देने लगती है। ऐसे मामलों में अक्सर बैकफुट पर होती है। हंगामा करने वाले लाठी डंडे लेकर हाइवे जाम कर देते हैं। सहमे हुए यातायात का रूट डायवर्ट कर दिया जाता है। रिमारी में एक टुकड़ा सरकारी जमीन के लिए साल के पहले ही दिन तीन लोगों की हत्या कर दी गई।
कैसे मान लिया जाए कि, अपराधियों में पुलिस और कानून डर है। सम्मान तो दूर की बात है। क्राइम मीटिंग शायद इसलिए की जाती है कि, खानापूॢत के लिए करनी पड़ती है। हत्या, हत्या के प्रयास, लूट और दुष्कर्म के बढ़ते आंकड़ों से रोजनामचा भरा पड़ा है। इसमें वो लोग शामिल नहीं हैं, जिन्होंने लोकलाज के या अपराधियों के डर से शिकायत नहीं की। अथवा, जिन्हें पुलिस ने थाने से डपट कर चलता कर दिया। औद्योगिक अशांति के चलते एक सीमेंट फैक्ट्री के सीजेएम और दूसरी सीमेंट फैक्ट्री के अधिकारी पर मजदूर जानलेवा हमला कर देता है।
शहर से गांव देहात तक गोली चल रही है। अपराधी जान के दुश्मन बने हैं। पुलिस हर वारदात के बाद सुरक्षा का भरोसा देती है। पर, कर नहीं पाती। वह चाहती है लोग सहयोग करें। पर कैसे? सड़क से घर के भीतर तक अपराधियों की दहशत है। बच्चों से लेकर महिलाएं तक असुरक्षित हैं। कब, किसे, कौन और कहां लूट लेगा, भरोसा नहीं। आंकड़ों पर गौर करें, हर महीने कितने ज्ञात-अज्ञात शव जहां-तहां पड़े मिलते हैं। दर्ज एफआईआर के कितने अपराधी पकड़े जाते हैं।
पीडि़तों की चप्पलें घिस जाती हैं पता करते-करते कि, उसकी एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई। कुछ तो डर के कारण थाना जाना छोड़ देते हैं। अनगिनत चोरियों के मामलों में ज्यादातर पीडि़त पक्ष मान लेता है कि, चोरी गया सामान नहीं मिलना, वक्त खराब करने से क्या फायदा। अस्पताल मारपीट के घायलों से भरा पड़ा है।
पुलिस की विवेचना पर भी सवाल होते हैं। लोग हैरान हैं कि, अगर विवेचना और केस डायरी कमजोर नहीं तो अपराधी छूट कैसे जाते हैं? एसपी से सीएसपी स्तर के अधिकारियों के पास सिर्फ दो ही काम हैं। पहला आदेश-निर्देश दूसरा व्हीआईपी ड्यूटी। वक्त मिला तो, छोटों पर कार्रवाई। आम सुरक्षा के नजरिए से सख्ती जैसी चीज कम ही दिखाई देती है। बीते कुछ महीनों में कानून व्यवस्था के हालात अधिक बिगड़े हैं। चोरियों में इजाफा हुआ। मैहर और सतना में बलवा के हालात बने। पुलिस को थाने के सामने ही चुनौती दी गई। फिर, सवाल यह है कि अपराधियों की परछाई पकडऩे दौड़ रही पुलिस के साए में हम आखिर कितने सुरक्षित हैं?
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