इस वर्ष मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मददेनजर शराब कारोबारियों ने मोटी रकम खर्च की है। और 15 प्रतिशत राशि बढ़ाकर शराब की दुकानें खरीदी है। अंदाजा लगाया जा रहा है कि हर मतर्वा चुनावी वर्ष में देशी-विदेशी मदिरा की खपत अन्य वर्षों की अपेक्षा ज्यादा होती रही है। इसी मुनाफे की लालच में ठेकेदारों ने बड़ी पूंजी आबकारी विभाग को दी है। और राज्य सरकार को टैक्स में भी बढ़ावा मिला है।
सिंडीकेट के तहत इस मतर्वा जिले के सभी समूहों के ठेकेदारों ने एक जुट होकर कारोबार करने की ठानी है। इसीलिए अंदरूनी तौर पर विगत दिनों शहर के एक प्रतिष्ठित होटल में बैठक भी आयोजित हुई थी। जिसमे सभी ने एक मत से निर्णय लिया कि जिले की हर दुकान में एक ही मूल्य पर शराब दी जाएगी। जिससे कारोबार की सेहत में फर्क न पड़े और गत वर्ष हुए घाटे के सौदे को मुनाफे में परिवर्तित किया जा सके।
बताया गया कि कुछ वर्षों पहले तक बॉर्डर के राज्यों और दूसरे जिले की सीमा पर स्थित दुकानों पर कम रेट पर शराब मिला करती थी। लेकिन सिंडीकेट लागू होने के बाद गांव से लेकर शहर तक और दूसरे राज्यों की सीमा से लेकर जिलों की सीमा पर बनी दुकानों पर ये नियम अपनाया जा रहा है।
प्रदेश सरकार ने जनता से वादा किया था कि रहवासी क्षेत्रों में शराब दुकानें नहीं संचालित होंगी। लेकिन इस वर्ष सभी दुकानें अपने पुरानी जगहों पर संचालित हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन को तार-तार किया जा रहा है। सरकार ने जनता को भरोसा दिलाया था कि धीरे-धीरे प्रदेश में शराबबंदी की जाएगी लेकिन ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। सभी दुकानें यथावत रहवासी क्षेत्रों में चल रही है। प्रशासन सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन को भूल गया है।