केंद्र सरकार ने शहरों के विकास के लिए स्मार्ट सिटी की योजना लागू की है। उसमें भी रीवा का नाम शामिल नहीं हो पाया है। विंध्य प्रदेश के समय रीवा, भोपाल और जबलपुर से कम नहीं था। अब यह एक संभागीय मुख्यालय होकर रह गया है। घनश्याम सिंह कहते हैं कि बाणसागर, रिहंद आदि की परियोजनाएं आई जिसमें दूसरे राज्यों को शामिल कर दिया। एम्स, आइआइएम, ट्रिपलआइटी, ला-विवि सहित अन्य बड़े प्रोजेक्ट दूसरी जगह दिए जा रहे हैं। सरकार को यह समझना होगा कि यह भी उन्हीं महानगरों की तरह पुरानी राजधानी का हिस्सा है, जिनके लिए विकास पर जोर दिया जा रहा है।
विंध्यप्रदेश के विलय के बाद रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिज्यकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यहां की उपेक्षा लगातार होती रही।