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सतना

Old Tales Madhya Pradesh: विंध्य प्रदेश का विलय हुआ पर शर्तों के अनुसार नहीं मिले संसाधन, नेहरू का वादा भी भूल गई राज्य सरकारे

रीवा को उपराजधानी की तरह सुविधाएं देने का किया गया था वादा

सतनाNov 09, 2018 / 05:50 pm

suresh mishra

MP Election 2018: vindhya pradesh ke vilay ki kahani

MP Election 2018: vindhya pradesh ke vilay ki kahani

मृगेंद्र सिंह@रीवा। आजादी के बाद रीवा स्टेट विंध्य प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था। 1952 में पहली बार विंध्य प्रदेश की विस का गठन किया गया। चार साल तक अस्तित्व में रहे इस प्रदेश के विलय का फरमान भी सरकार ने जारी कर दिया। स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हुआ, आंदोलन छेड़े गए। यह पहला अवसर था जब युवाओं और छात्रों के हाथ में आंदोलन की कमान थी। पुलिस की गोलियों से गंगा, चिंताली नाम के दो आंदोलनकारी शहीद हुए। दर्जनों की संख्या में लोग जख्मी हुए।
राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे: नेहरू

बढ़ते विरोध के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा कि एकीकृत मध्यप्रदेश में शामिल हो रहे राज्यों को मजबूती दी जाएगी, उन्हें राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे। उस दौर को देखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता घनश्याम सिंह बताते हैं कि विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ला और केन्द्र सरकार के बीच कुछ शर्तों को लेकर समझौते हुए थे। शर्तों बारे में मांग भी उस दौरान उठी कि सार्वजनिक किया जाए पर ऐसा नहीं हुआ।
यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार

भाषणों में आश्वासन दिया गया था कि विंध्य प्रदेश को संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। एक नवंबर 1956 को विंध्यप्रदेश के विलय के साथ नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया। जिन क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया, उसमें भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर आदि को विकसित करने बड़ी योजनाएं दी गईं। तब से लेकर अब तक लगातार यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार होता रहा है। इसे केवल सुदूर जिले की भांति समझा गया। अब भी सबसे अधिक राजस्व यहीं से जा रहा है। उस समय सिंगरौली, शहडोल से दतिया तक का हिस्सा विंध्य प्रदेश में शामिल था।
स्मार्ट सिटी के लायक भी नहीं समझा
केंद्र सरकार ने शहरों के विकास के लिए स्मार्ट सिटी की योजना लागू की है। उसमें भी रीवा का नाम शामिल नहीं हो पाया है। विंध्य प्रदेश के समय रीवा, भोपाल और जबलपुर से कम नहीं था। अब यह एक संभागीय मुख्यालय होकर रह गया है। घनश्याम सिंह कहते हैं कि बाणसागर, रिहंद आदि की परियोजनाएं आई जिसमें दूसरे राज्यों को शामिल कर दिया। एम्स, आइआइएम, ट्रिपलआइटी, ला-विवि सहित अन्य बड़े प्रोजेक्ट दूसरी जगह दिए जा रहे हैं। सरकार को यह समझना होगा कि यह भी उन्हीं महानगरों की तरह पुरानी राजधानी का हिस्सा है, जिनके लिए विकास पर जोर दिया जा रहा है।
राज्य स्तर के ये कार्यालय भी चले गए
विंध्यप्रदेश के विलय के बाद रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिज्यकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यहां की उपेक्षा लगातार होती रही।

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