satna: कृषि विभाग ने तालाब गहरीकरण के नाम पर रोड ठेकेदार को मिट्टी बांटने का रचा खेल
खेती और पोषक तत्वों के लिए आवश्यक मिट्टी कृषि विभाग ने सड़क बनाने के लिए दीएक ओर विभाग मृदा संरक्षण अभियान चला रहा दूसरी ओर सतना में मिट्टी हटवाई जा रही
Agriculture department created a game to distribute soil to road contractor in the name of pond deepening
सतना। बेहतर और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक ओर कृषि विभाग मृदा संरक्षण अभियान चलाता है। कृषि विभाग ने भूमि संरक्षण के लिए बकायदे अधिकारी रखे हुए हैं ताकि वे मिट्टी के कटाव को रोके और उसे नदी नाले में जाने से रोके। क्योंकि मिट्टी बनने में लाखों साल लगते हैं और मिट्टी की मूल और उपजाऊ परत महज 10 फीट की ही होती है। अगर यह चली गई तो फिर पेड़, पौधे, फसल आदि नहीं होंगे। लेकिन सतना जिले का कृषि विभाग अपने कृषि प्रक्षेत्र की मिट्टी को सड़क निर्माण के लिए देने जा रहा है। किसी कृषि प्रक्षेत्र से सड़क ठेकेदार को सड़क के लिए मिट्टी देने का यह प्रदेश का पहला मामला होगा। हालांकि इसके पीछे की कहानी सड़क बनाने वाले ठेकेदार को निजी लाभ पहुंचाना है। स्थानीय अधिकारियों ने कलेक्टर को भी धोखे में रखकर राज्य शासन को प्रस्ताव भिजवा कर अनुमति ले ली। अब यहां पर कथित तौर पर तालाब खोदा जाएगा। लेकिन उसकी मिट्टी सड़क ठेकेदार को मुफ्त में दी जाएगी।
यह है मामला कलेक्टर अनुराग वर्मा की ओर से आयुक्त किसान कल्याण तथा कृषि विभाग को एक चिट्ठी जाती है। इसके बाद इस चिट्ठी के जवाब में आयुक्त कलेक्टर को इस आशय की अनुमति दे देते हैं कि कृषि प्रक्षेत्र गहवरा की भूमि से निःशुल्क मिट्टी निकाल कर सड़क ठेकेदार मे. गौर टारकोट प्रा.लि. कैम्प जिगनहट को दे दी जाए।
कृषि अफसरों ने दिया हास्यास्पद अभिमत इस प्रकरण में आयुक्त ने यह भी उल्लेखित किया है कि विभागीय अभिमत में उप संचालक ने यहां 2005 व 06 में बनाए गए दो तालाबों का उल्लेख किया है। और यह भी बताया है कि बगल में दो नाले निकले हैं जिनकी गहराई अधिक होने से संचित वर्षा जल रिसाव के माध्यम से नालों में चला जाता है। यदि यहां तालाबों को पर्याप्त गहरा कर दिया जाए तो रिसाव के माध्यम से होने वाली जल हानि को रोका जा सकता है।
पूर्व के अधिकारियों ने नहीं दी थी अनुमति पूर्व के अधिकारियो के पास भी सड़क ठेकेदार अपना प्रस्ताव लेकर आया था। लेकिन अधिकारियों ने यह कहते हुए अनुमति देने से इंकार कर दिया था कि वह कृषि प्रक्षेत्र है। वहां पर उन्नत बीज की खेती होती है और नील हरित शैवाल का उत्पादन होता है। मिट्टी की उत्पादकता अधिकतम 4 मीटर होती है लिहाजा मृदा संरक्षण के लिहाजा से मिट्टी नहीं दी जा सकती है। न ही गहराई ज्यादा कराई जा सकती है क्योंकि इससे फसल की सघनता भी प्रभावित होगी।
IMAGE CREDIT: patrikaयह है ठेकेदार को लाभ पहुंचाने की साजिश दरअसल सतना-मैहर फोर लेन सड़क बना रहा ठेकेदार अभी जहां से मिट्टी ला रहा है और जिस क्षेत्र में अब उसका रोड अर्थ वर्क का काम होना है, वहां तक मिट्टी की ढुलाई में ठेकेदार को अच्छा खासा परिवहन भार (लीड खर्चा) लगेगा। इससे बचने के लिए उसने अपनी सड़क के नजदीक कृषि प्रक्षेत्र से मिट्टी निकालने की सोची। इसके एवज में उसने कृषि विभाग के अफसरों को दोबारा प्रपोजल दिया। अधिकारियों ने उसके लाभ के लिए अपने प्रक्षेत्र की मिट्टी देने पर सहमत हो गए। इस साजिश को पाक साफ बताने के लिए तालाब गहरीकरण का नाम दे दिया गया।
कृषि प्रक्षेत्र से मिट्टी देना पूरी तरह गलत अब अपने मूल कैडर में जा चुके और मध्यप्रदेश के कृषि विभाग में संचालक कृषि रह चुके मोहनलाल मीना ने कहा कि यह अनुमति देना ही अनुचित है। अगर तालाब बनाना जरूरी है तो कृषि विभाग के पास अपने फंड है। इससे जो तालाब बनेगा उसकी तय डिजाइन सर्वे, जरूरत सब स्पष्ट होगी और उसका आकार आदि भी तय होगा। इसमें प्रक्षेत्र की मिट्टी बाहर नहीं जाएगी बल्कि मेड़ या प्रक्षेत्र में ही रहेगी। रोड ठेकेदार को तालाब गहरीकरण के नाम पर मिट्टी देना गलत है।
कलेक्टर से भी बोला झूठ इस मामले में कलेक्टर से भी तथ्य छिपाए गए। ठेकेदार ने यह जानकारी दी कि अर्थ वर्क के लिए जैसी मिट्टी चाहिए वो उसी क्षेत्र में मिलती है। जब इस मामले में लोक निर्माण विभाग के सेवा निवृत्त ईई जेएस तिग्गा से बात की गई तो उन्होने कहा कि अर्थ वर्क के लिए कोई बहुत स्पेशल मिट्टी नहीं चाहिए होती है। 7 सीबीआर (कैलीफोर्निया बियरिंग रेसियो) की मिट्टी चल जाती है। इस मामले में क्लास वन ठेकेदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उचेहरा में तमाम स्थानों पर यह मिट्टी है। लेकिन सड़क का काम करने वाला ठेकेदार अपनी लागत घटाने के लिए यह खेल कृषि विभाग के अधिकारियों से मिलकर कर रहा है।
तालाब बनाने का तय है नियम आरईएस में ईई हिमांशु तिवारी बताते हैं कि तालाब गहरीकरण और जीर्णोद्धार के तय नियम है। पहले उसका एल सेक्शन लेबल लिया जाना चाहिए। 30 मीटर पर क्रास सेक्शन लेना चाहिए। लेबल साउण्डिंग के बाद कंटूर नक्शा तैयार किया जाना चाहिए। फिर बॉरो क्षेत्र तय करते हुए ट्रायल पिट करने के बाद मिट्टी निकाली जाती है। यह मिट्टी तालाब के मेड़ पर ही डाली जाती है। इधर जिस तरीके से तालाब का गहरीकरण होना है उससे तालाब जैसी सरंचना नहीं बनती।
सकारात्मक सोचिए इस मामले में उप संचालक कृषि राजेश त्रिपाठी ने कहा कि सकारात्मक सोचिए। सड़क भी सरकार का काम है इसलिए मिट्टी देने में कोई हर्ज नहीं है। हम अपना तालाब भी गहरा करवा रहे हैं जिससे पानी का सीपेज रुक जाए।
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