ग्रामीण परिवेश में रहने वाली कमलेशी बताती हैं कि वर्ष २००७ में उनके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। अब बेटों की जिंदगी संवारने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। मैंने खेती-बाड़ी करके अपने बेटों को पढ़ाने की ठानी और उन्हें कभी भी आर्थिक तंगी का एहसास नहीं होने दिया। वर्तमान में कमलेशी के बड़े बेटे मुनेश कुमार मीना मुम्बई में अस्सिटेंट प्वाइंट मैन (एपीएम) के पद पर हैं, जबकि छोटे बेटे एमए करने के बाद रेलवे की तैयारी में जुटे हैं। कमलेशी ने सबसे पहले घर में बड़ी बेटी की शादी की। इसके बाद बेटों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाने की जिद पाली और इसमें वह कामयाब रहीं।
यूं लिखी कामयाबी की इबारत
कमलेशी के बड़े बेटे मुनेश बताते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं मां की बदौलत हूं। पिता के दुनिया के जाने के बाद मां ने कभी भी हमारा हौसला नहीं टूटने दिया। मां ने हमारी थोड़ी-बहुत जमीन पर खेती से हमारा पालन-पोषण करने के साथ पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठाया। साथ ही दूध बेचकर हमारी पढ़ाई जारी रखी। मुनेश बताते हैं कि यह मां के हौसले की ही बात है कि हमें कभी पढ़ाई के लिए पैसों की कमी नहीं आई। मुनेश बताते हैं कि उनके सिर से जब पिता का साया उठा तो वह १०वीं कक्षा में पढ़ते थे। इसके बाद उन्होंने कॉलेज की शिक्षा पूरी की। इसके बाद जयपुर में रहकर कॉम्पटीशन की तैयारी की। इसमें हर कदम पर मां का साथ मिला।