इसरो के मुताबिक सैटेलाइटों को वांछित कक्षा में पहुंचाने के अपने मुख्य उद्देश्य के बाद पीएसएलवी तीन भागों में बंट जाता है। इसे ही पीओईएम 3 नाम दिया गया है। इसमें सबसे पहले चरण में पीएसएलवी को 650 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा से 350 किलोमीटर वाली कक्षा में लाया गया। इससे पीएसएलवी को शीघ्र कक्षा में पहुंचने अवसर मिल गया और कक्षा में जल्दी प्रवेश हो गया। इससे कक्षा परिवर्तन के दौरान हादसे का खतरा भी कम हो गया।
पीओईएम -3 में 9 विभिन्न तरह के प्रायोगिक पेलोड लगाए गए हैं। इससे कई तरह के वैज्ञानिक प्रयोग किए जाने हैं। इनमें से 6 पेलोड को गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा दिया गया है। इन पेलोड को एक महीने के अंदर बनाए गए थे। हालांकि इसमें खर्च अधिक आता है, इसलिए इसरो ने निजी भागीदारी को शामिल किया है। इसरो ने पिछले कुछ माह में कई अभिनव प्रयोग किए हैं। हाल ही इसरो की रियूजेबल लॉन्च व्हीकल तकनीक का सफल परीक्षण किया गया था। इसे रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल पुष्पक नाम दिया गया था।