अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पहला मानवयुक्त मिशन मर्करी रेडस्टोन-3 को साल 1961 में लांच किया था। एलन शेफर्ड स्पेस में जाने वाले पहले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री बने थे। 15 मिनट के इस मिशन के लिए अंतरिक्ष में टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं थी। मगर धरती पर वापस लौटने के दौरान अंतरिक्ष यात्री शेफर्ड को टॉयलेट जाना था। कोई व्यवस्था न होने पर उन्होंने स्पेस सेंटर से अपने सूट मे ही पेशाब करने की परमिशन मांगी थी। इसके बाद उन्हें गीले स्पेस सूट में ही वापस लौटना पड़ा था।
अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने के लिए बाद में टॉयलेट के लिए जुगाड़ लगाया गया। इसके लिए एक पाउच बनाया गया। ट्रायल में तो यह ठीक था, लेकिन अंतरिक्ष में यह हर बार फट जाता था। बाद में इसका आकार बढ़ाया गया तब ये काम चलाने लायक बना। जबकि शौच के लिए यात्रियों को अपने पीछे एक बैग चिपकाकर रखना पड़ता था। मगर इन चीजों के चलते वे बदबू से परेशान रहते थे।
अपोलो मिशन के करीब एक दशक बाद साल 1980 में नासा ने महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने का फैसला किया। तब नासा ने MAG (मैग्जिमम एब्जॉर्बेंसी गार्मेंट) बनाया। यह एक तरह का डायपर था। इसे पुरुष एस्ट्रनॉट भी उपयोग करते थे।
स्पेस यात्रियों को मल-मूत्र की दिक्क्त न हो इसके लिए अंतरिक्ष में टॉयलेट की व्यवस्था को दुरुस्त किया गया। इसके लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जीरो ग्रैविटी टॉयलेट का प्रयोग किया जाने लगा। इसमें जमा पेशाब को वाटर रिसाइक्लिंग यूनिट से साफ करके पीने योग्य पानी में बदला जाता है। जबकि मल को कंप्रेस करके डंप कर दिया जाता है। जब भी कोई यान स्पेस स्टेशन से वापस आता है तब कंप्रेस्ड मल के कंटेनर को उसके साथ भेज दिया जाता है।
नासा की वेबसाइट के अनुसार अंतरिक्ष में समय बिताने के दौरान इकट्ठा होने वाले सभी कूड़े-कचरे को एक बैग या थैले में भरा जाता है। जब इसका वजन दो टन का हो जाता है तो इसे बिना ड्राइवर वाले खास स्पेसशिप में लाद दिया जाता है। इसके बाद इसे वापस धरती की तरफ भेजा जाता है। धरती के गुरुत्वाकर्षण से पैदा हुए घर्षण से सारा कूड़ा जलकर राख हो जाता है। इसमें अंतरिक्ष यात्रियों का मल भी शामिल होता है। इसी तरह से अंतरिक्ष यात्रियों के कपड़े भी जला दिए जाते हैं। क्योंकि स्पेस में धुलाई का कोई जुगाड़ नहीं होता है।