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social media responsibility : सोशल मीडिया कंपनियों की चुप्पी

social media responsibility : बाइडन ने सीधे कहा था कि सोशल मीडिया गलत जानकारियों को रोकने का पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है।

Aug 06, 2021 / 11:51 am

विकास गुप्ता

social media responsibility : सोशल मीडिया कंपनियों की चुप्पी

social media responsibility : सोशल मीडिया कंपनियों की चुप्पी

येल आइसनस्टेट, (यूचर ऑफ डेमोक्रेसी फेलो, बग्र्रुएन इंस्टीट्यूट)

social media responsibility : सोशल मीडिया कंपनियां social media companies आज पहले से अधिक सार्वजनिक जांच के दायरे में हैं। कोविड महामारी के दौर से निकलने की कोशिशों के बीच वैक्सीन के बारे में गलत सूचना और दुष्प्रचार अब भी जारी है। जनता ही नहीं वाइट हाउस भी इसका जवाब चाहता है। मुश्किल यह है कि फेसबुक facebook जैसी कंपनियां कहानियों को पूरी तरह नियंत्रित कर सकती हैं। लगता है- आखिरकार एक मोड़ आ रहा है। दूसरी ओर, सिलिकॉन वैली silicon Valley स्थित बड़ी टैक कंपनियों के पूर्व या वर्तमान कर्मचारियों से सुरक्षा और अन्य मुद्दों पर बात करना मुश्किल भरा है।

फेसबुक की पब्लिक रिलेशन टीम के लिए पिछले कुछ सप्ताह मुश्किल भरे रहे हैं। हाल ही में एक नई पुस्तक ‘एन अग्ली ट्रुथ: बिहाइंड फेसबुक बैटल फॉर डोमिनेशन’ जारी हुई है। इस पुस्तक में मेरे सहित लगभग 400 वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों के साक्षात्कार हैं। यह किताब राष्ट्रपति बाइडन द्वारा वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाने के ठीक पहले बाजार में आई थी। बाइडन ने सीधे कहा था कि सोशल मीडिया गलत जानकारियों को रोकने का पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है। दुर्भाग्य से, ज्यादातर लोग जो कंपनी के आंतरिक कामकाज के बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं, वे गुमनाम रूप से ही प्रेस से बात करने को राजी हैं। उन्हें प्रतिशोध का भय है अथवा वे नकारात्मक रूप से कुछ भी न कहने के अनुबंध से बंधे हैं।

मैंने 2018 में फेसबुक के लिए छह माह काम किया। कैम्ब्रिज एनालिटिका के डेटा लीक प्रकरण के बाद फेसबुक यूजर्स की जानकारियों की सुरक्षा पर सवाल उठे थे। काफी उतार-चढ़ावों के बाद मैंने फेसबुक छोड़ दिया। इसके बाद मैंने लोकतंत्र पर सोशल मीडिया के प्रभावों और उन कार्यों के लिए कंपनियों को जवाबदेह बनाने के सुझावों के बारे में अपनी राय साझा की। मेरा मानना था कि उन्होंने जानबूझकर फैसले लिए थे, जिससे हमारे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा। अगर मैंने नकारात्मक न कहने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए होते तो मुझे फेसबुक पर किसी के कार्यों या बयानों की आलोचना करने से स्थाई रूप से रोक दिया जाता और अगर मैंने इसका उल्लंघन किया तो कंपनी हर्जाना मांग सकती थी।

अपने आंतरिक कामकाज के बारे में वास्तविक पारदर्शिता के बहुत कम अवसर के साथ, ये कंपनियां यह मानती रहती हैं कि कर्मचारी उनकी हां में हां मिलाएंगे। पारदर्शिता का एक महत्त्वपूर्ण घटक उन लोगों के बीच से उभरता है, जो घटनाओं के पर्दे के पीछे होते हैं यानी कर्मचारी। वाइट हाउस और फेसबुक की लड़ाई में दिखा है कि कंपनी अपने कर्मचारियों को महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ज्यादा प्रभावी तरीके से चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। चुनौती तो कंपनियों की विश्वसनीयता को लेकर है, जब वे पूर्व कर्मचारियों को चुप कराने पर अपनी पूरी ताकत लगाती हैं।
(द वाशिंगटन पोस्ट)

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