भगवान पदार्थों के नहीं भाव के हैं भूखे
जबलपुर रोड लूघरवाड़ा में जारी श्रीमद् भागवत कथा
भगवान पदार्थों के नहीं भाव के हैं भूखे
सिवनी. जिस तरह से अमृत कथा को सुनकर महापापी धुंधकारी भी परम धाम को प्राप्त हुए। इसी तरह से कथा का श्रवण कर मनुष्य भी अपना लोक सुधार सकते हैं। उक्ताशय की बात वृंदावन से आए श्रीहित ललित बल्लभ नागार्च ने जबलपुर रोड लूघरवाड़ा स्थित लॉन में श्रद्धालुजनों से श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कही।
महाराज ने आगे कहा कि गोकरण की समृद्धि से अपने भाई की आत्मा को भटकने से बचाकर उसे सत्मार्ग की राहत दिखाई। उसके कानों में श्रीमद् भागवत कथा पड़ते ही वह भी स्वर्ग चला गया। यह कथा सम्पूर्ण कथा जीव के कल्याण की कथा है। जिसे सुकदेव मुनि से राजा पीरिक्षत ने सुनी थी और वह अपने जीवन में बचे दिन भगवत चर्चा में लगाकर ईश्वर के परमधाम को प्राप्त हो गए।
उन्होंने कहा कि भगवान लोगों के सारे पापों को जला कर राख कर देते हैं। उन्होंने विदुर का पावन चरित्र सुनाते हुए कहा कि भगवान पदार्थों के नहीं भाव के भूखे हैं। दुर्योधन के छप्पन भोग त्यागकर भगवान ने विदुर के घर जाकर केले के छिलकों का भोग लगाया। हमें भगवान की सेवा भाव से करना चाहिए। कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है।
महाराज ने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो तो श्रीमद्भागवत कथा श्रवण मात्र से वह मुक्त हो जाता है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से बताया कि मनुष्य को हर पल प्रभु का नाम स्मरण करते रहना चाहिए चाहे भाव से या कुभाव से परमात्मा का नाम असर करता है, भक्ति से हमारे जीवन के सारे पाप, ताप, संताप जलकर भस्म हो जाते हैं। जिस प्रकार जलती हुई अग्नि में आप कुछ भी डालते हैं और वह जल कर रख हो जाता है, उसी प्रकार परमात्मा सारे पापों को जला कर राख कर देते हैं।