देवी भागवत से होता है काम, क्रोध, लोभ का नाश
लखनादौन के सिहोरा में हो रहा देवी पुराण आयोजन
मनुष्य को जीवन निर्माण की प्रेरणा देते हैं महापुरुषों के जीवनवृत
सिवनी. लखनादौन विकासखंड के सिहोरा ग्राम में चल रहे श्रीमद्देवी भागवत महापुराण के दौरान गुरुवार को नारायणानंद तीर्थ महाराज के द्वारा बताया गया कि कोई भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमारे मन में दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है। मनुष्य के दृढ़ संकल्प से ही धर्म, कर्म, यज्ञ, व्रत एवं देवी भागवत श्रवण आदि सम्भव होता है तथा कार्य की सिद्धि होती है। भेद को निर्मूल कर अभेद दृष्टि स्थापित करना ही शक्ति उपासना एवं श्रीमद्देवी भागवत श्रवण का प्रयोजन है। काम, क्रोध, लोभादि रूपी अविद्या का नाशक देवी भागवत है अर्थात श्रीमद्देवी भागवत श्रवण का फल है।
महाराज ने बताया किए चाहे यज्ञ हो, दान हो या तप हो बिना आध्यात्मिक लक्ष्य के व्यर्थ रहता है, अतएव यह घोषित किया गया है कि ऐसे कार्य कुत्सित हैं। प्रत्येक कार्य शिवशक्तिभावनामृत में रहकर ब्रम्ह के लिए किया जाना चाहिए। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में भगवती में श्रद्धा की संस्तुति की गई है। ऐसी श्रद्धा तथा समुचित मार्ग दर्शन के बिना कोई फल नहीं मिल सकता। समस्त वैदिक आदेशों के पालन का चरम लक्ष्य आदिशक्ति को जानना है। इस सिद्धान्त का पालन किए बिना कोई सफल नहीं हो सकता। इसीलिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग यही है कि मनुष्य प्रारम्भ से ही किसी प्रामाणिक गुरु के मार्गदर्शन में आत्मशक्ति के अनुसंधान में कार्य करे। सब प्रकार से सफल होने का यही मार्ग है।
महाराज ने बताया कि वृद्ध अवस्था में लोग देवताओं, भूतों या कुबेर जैसे यक्षों की पूजा के प्रति आकृष्ट होते हैं। यद्यपि सतोगुण रजोगुण तथा तमोगुण से श्रेष्ठ है, लेकिन जो व्यक्ति शिवशक्ति भावनामृत को ग्रहण करता है, वह प्रकृति के इन तीनों गुणों को पार कर जाता है। यद्यपि क्रमिक उन्नति की विधि है, किन्तु शुद्ध भक्तों की संगति से यदि कोई शिवशक्ति भावनामृत ग्रहण करता है, तो सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। इस प्रकार से सफलता पाने के लिए उपयुक्त गुरु प्राप्त करके उसके निर्देशन में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। तभी शक्ति में श्रद्धा हो सकती है। जब कालक्रम से यह श्रद्धा परिपक्व होती है, तो इसे ईश्वर प्रेम कहते हैं। यही प्रेम समस्त जीवों का चरम लक्ष्य है। अतएव मनुष्य को चाहिए कि सीधे शक्ति उपासना का मार्ग ग्रहण करें।
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