परिवार की जिम्मेदारियां पूरा करने के बाद लिया निर्णय
जीतेश बताते हैं कि उनके ऊपर पारिवारिक जिम्मेदारियां थी इसी वजह से वो पहले संन्यास नहीं ले पाए थे लेकिन अब जब उन्होंने तमाम पारिवारिक जिम्मेदारियों का अच्छे से निर्वहन कर लिया है तो अब वो जैन संत बनने जा रहे हैं। 30 मई को जीतेश की दिक्षा उत्तर भारत में होगी और उसके बाद वो पूर्व रुप से जैन धर्म में संन्यासी बन जाएंगे। जीतेश के इस फैसले से उनके परिजन भी खुश हैं और उनका पूरा सपोर्ट कर रहे हैं।
‘सुख’ के लिए छोड़ा करोड़ों का पैकेज
मुंबई विश्वविद्यालय से फिलॉसफी की पढ़ाई करने वाले जीतेश कुमार ने यूएई, ओमान, कतर, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में अपनी सेवाएं दी हैं वो 7 भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, बंगाली, संस्कृत, प्राकृत और गुजराती के भी जानकार है। उन्होंने बताया कि वो दुबई में फिलॉसफी पढ़ाते थे और उनका पैकेज करोड़ों रुपए का था। दुबई में उनके रहने पर ही कंपनी सालाना 40 लाख रुपए खर्च करती थी। उन्होंने आगे कहा कि तमाम सुविधाओं के बावजूद उन्हें असली सुख कभी नहीं मिला। उन्होंने कहा कि 12वीं कक्षा से ही उन्होंने ग्रंथों का अध्ययन करना शुरु कर दिया था। जिनका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, हर ग्रंथ के आखिर में एक सुखद अंत और संत बनने की बात होती थी और इसी से प्रभावित होकर वो संत बनने की दीक्षा ले रहे हैं।
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