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सीधी

जिले के आदिवासी अंचल के छात्रावासों की दुर्दशा

चिमनी की रोशनी में छात्रावासों में गुजर रही आदिवासी बच्चों की रात, जंगली क्षेत्र में दिन ढलते ही छात्रावास में छा जाता है घुप अंधेरा, अव्यवस्था के बीच छात्रावासों में रहना पसंद नहीं करते बच्चे, जिले कुसमी विकासखंड अंतर्गत आदिवासी विकास विभाग के छात्रावासों का हाल

सीधीDec 08, 2019 / 02:29 pm

Manoj Kumar Pandey

The plight of hostels of tribal areas of the district

The plight of hostels of tribal areas of the district

सीधी। जिले के आदिवासी विकासखंड कुसमी अंतर्गत संचालित आदिवासी छात्रावासों तथा आश्रमों में बदहाली का आलम है। आदिवासी बच्चों के लिए संचालित किए जाने वाले इस आश्रमों व छात्रावासों में सुविधाएं मुहैया करने के लिए शासन द्वारा बजट तो मुहैया कराया जाता है, लेकिन अधीक्षकों व जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के चलते व्यवस्थाएं सुदृढ़ नहीं हो पा रही हैं, जिसका परिणाम यह है कि यहां आदिवासी परिवार के बच्चे प्रवेश तो लेते हैं, लेकिन रहते नहीं है, इसके बाद भी बच्चों की फर्जी उपस्थित दर्शाकर बजट डकारने का खेल चल रहा है।
कुछ ऐसा ही हाल जिले के दूरांचल कुसमी विकासखंड के ग्राम हर्रई में संचालित आवासीय आदिवासी मिश्रित आश्रम हर्रई का सामने आया है, जहां बिजली की सुविधा मुहैया नहीं है। छात्रावास में प्रकाश के लिए सोलर पैनल के माध्यम से बिजली मुहैया कराए जाने की व्यवस्था बनाई गई थी, लेकिन करीब एक वर्ष से वह भी खराब पड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में यहां रहने वाले बच्चों को चिमनी व लालटेन का सहारा लेना पड़ता है। घने जंगलों के बीच संचालित इस आश्रम में प्रकाश व्यवस्था न होने से दिन ढलने के बाद बच्चे डर में रात गुजारते हैं। बारिश के मौसम में तो बच्चों को काफी परेशानी होती है। बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारी बेपरवाह बने हुए हैं। यह आश्रम तो एक उदाहरण मात्र है, सूत्रों के अनुसार दूरस्थ आदिवासी अंचल के कई छात्रावासों व आश्रमों का यही हाल बना हुआ है।
तीस सीटर छात्रावास में मिले महज दो बच्चे-
जिले के कुसमी विकासखंड अंतर्गत हर्र्रई गांव में संचालित आवासीय आदिवासी मिश्रित आश्रम शाला है तो तीस सीटर, लेकिन विगत दिवस पत्रिका के भ्रमण के दौरान यहां केवल दो बच्चे ही उपस्थित मिले। बच्चों व चौकीदार ने बताया कि वैसे नियमित रूप से बच्चे रहते हैं, लेकिन आज अवकाश होने के कारण अपने-अपने घर चले गए हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अव्वस्थाओं के कारण बच्चे अपना नाम दर्ज कराने के बाद घर चले जाते हैं।
सोलर पैनल सुधार का नहीं किया गया प्रयाश-
बताया गया कि हर्रई गांव ही बिजली विहीन है, गांव को सोलर पैनल के माध्यम से विद्युतीकृत किया गया था, लेकिन वह खराब हो गया। वहीं छात्रावास में भी प्रकाश व्यवस्था के लिए सोलर पैनल लगवाया गया था, लेकिन वह भी बीते करीब एक वर्ष से खराब पड़ा है, जिसकी जानकारी जिम्मेदार अधिकारियों को दी गई थी, लेकिन खराब सोलर पैनल के सुधार हेतु प्रयाश नहीं किया गया, जिसके कारण बच्चे चिमनी व लालटेन के भरोसे रात गुजारने को मजबूर हैं।
……..आश्रम में लाइट नहीं है, इसलिए हम लोग लालटेन या सेल वाली छोटी टेबल लैंप से रात में पढ़ाई करते हैं, एक साल से इसी तरह की व्यवस्था है।
जयकरण सिंह, कक्षा-7
……..जंगल के बीच में आश्रम बना हुआ है, रात में काफी अंधेरा हो जाता है, बाहर निकलने मेें जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। यहां लाईट की व्यवस्था नही है।
रामकुमार ङ्क्षसह, कक्षा-3
……..गांव में अभी तक लाईट आई ही नहीं है, तो छात्रावास मेें कैसे लगेगी। आश्रम में प्रकाश व्यवस्था के लिए सोलर पैनल लगवाया गया था, जो पिछले एक वर्ष से खराब पड़ा है। प्रकाश के लिए लालटेन व टेबल लैंप है।
रामसूरत कोल, चौकीदार

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