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बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है मिर्गी रोग, उपचार नहीं करवाने से मानसिक विकास प्रभावित

र पर गंभीर चोट और न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर के कारण बच्चों में तेजी से मिर्गी रोग बढ़ता जा रहा है। बच्चों के अस्पतालों की ओपीडी में रोजाना मिर्गी (एपिलेप्सी) के दो से तीन मरीज आ जाते हैं। सिर पर गंभीर चोट और आनुवांशिक कारणों के कारण हुए मिर्गी रोग के कई नौनिहालों का मानसिक विकास तक रुक जाता है।

सीकरMar 27, 2024 / 11:23 am

Puran

बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है मिर्गी रोग, उपचार नहीं करवाने से मानसिक विकास प्रभावित

बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है मिर्गी रोग, उपचार नहीं करवाने से मानसिक विकास प्रभावित

सिर पर गंभीर चोट और न्यूरोलॉजिकल डिसआर्डर के कारण बच्चों में तेजी से मिर्गी रोग बढ़ता जा रहा है। बच्चों के अस्पतालों की ओपीडी में रोजाना मिर्गी (एपिलेप्सी) के दो से तीन मरीज आ जाते हैं। तेजी से फैल रहे मिर्गी रोग के कारण हर साल 26 मार्च को पर्पल डे ऑफ एपिलेप्सी के रूप में मनाया जाता है। चिंताजनक बात है कि बचपन में सिर पर गंभीर चोट और आनुवांशिक कारणों के कारण हुए मिर्गी रोग के कई नौनिहालों का मानसिक विकास तक रुक जाता है। मेडिसिन विशेषज्ञों के अनुसार माता-पिता दोनो के मिर्गी रोग होने पर बच्चे में रोग की दस प्रतिशत तक संभावना होती है। मिर्गी के करीब 60 प्रतिशत रोगियों में बचपन में ही दौरे आना और बेहोश होने के लक्षण नजर आने लगते हैं। वहीं अच्छी बात है कि 80 से 90 प्रतिशत बीमार उम्र बढ़ने के साथ दौरे आने की समस्या से काफी हद तक निजात पा लेते हैं।
यह है मिर्गी के लक्षण
चिकित्सकों के अनुसार अक्सर मिर्गी के दौरे सुबह के समय ज्यादा आते हैं। मिर्गी 5 से 15 साल और 70 से से 80 साल के बीच विकसित होती है, हालांकि जन्मजात ये बीमारी 5 से 10 प्रतिशत मामलों में ही देखी जाती है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है और मरीज हाथ और पैरों को मोड़ते हुए जमीन पर गिर जाता है। इसके साथ ही मरीज दांतों को भींचने या जोर जोर से हाथ-पैर हिलाने लगता है।
जागरुकता की कमी
मिर्गी एक क्रॉनिक नॉन कम्यूनिकेबल डीजिज है। इस बीमारी के प्रति लोगों में अभी भी जागरूकता की कमी है। यही कारण है कि कई लोग मिर्गी का दौरा पड़ने पर दवा के बजाए झाड़-फूंक करवाने लगते हैं। जिससे ये बीमारी आगे चलकर और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। लगातार समय पर दवाएं लेने से इस बीमारी पर निजात पाई जा सकती है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ये बहुत ज्यादा खतरनाक बीमारी नहीं
ये है कारण
चिकित्सकों के अनुसार नवजात शिशुओं में जन्म दोष, प्रसव के समय ऑक्सीजन की कमी, बचपन में गिरने से सिर पर गंभीर चोट आना। आमतौर पर कई बार मिर्गी के इलाज की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन 60-70 फीसदी मामले दवाओं से ही ठीक हो जाते हैं। लम्बे समय तक दवा लेने से मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है लेकिन कई बार रोगी को जीवन भर दवा लेनी पड़ती है।
इनका कहना है
चाय-काफी और ध्रूमपान से मिर्गी के लक्षण बढ़ जाते हैं। पर्याप्त नींद और तनाव को कम करने के लिए मेडिटेशन व योग के जरिए इस रोग से बचा जा सकता है। हालांकि जिसे ये रोग हो जाता है उसे ड्राइविंग, स्वीमिंग सहित स्पोर्टस से दूर रहना चाहिए।
डॉ. रामनिवास बिजारणिया, फिजिशियन

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