लियाकत अली भी पहले अन्य किसानों की तरह परम्परागत खेती ही किया करते थे। रबी में गेहूं, जौ और खरीफ में बाजरा व मोठ पर जोर रहता था, मगर आमदनी उम्मीद के मुताबिक नहीं रही थी। ऐसे में लियाकत ने लीक से हटकर खेती करने की ठानी।
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खेती को अच्छी आमदनी का जरिया बनाने की ठानकर लियाकत ने किन्नू की खेती शुरू की। सबसे पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाई। मिट्टी किन्नू की खेती के लिए उपयुक्त पाए जाने के बाद श्रीगंगानगर व अन्य जगहों से KINNOW के पौधे लेकर आए। सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम लगाया। नतीजा यह रहा कि देखते ही देखते लियाकत की पांच बीघा जमीन में किन्नू के साढ़े तीन सौ पौधे लहलहाने लगे।
किन्नू के पौधे लगाने के बाद लियाकत ने उनकी सार-संभाल, सिंचाई और खरपतवार दूर करने के कार्य को भी गंभीरता से ले रहे हैं। कुछ समय बाद उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलना शुरू हो गया। अब लियाकत किन्नू से सालाना एक से दो लाख रुपए की आमदनी ले रहे हैं।
लियाकत अली का किन्नू की खेती करना कई मायनों में खास है। एक तो ये मुस्लिम समाज से किसानों की संख्या गिनती की है, वहीं जिले के किसानों में भी किन्नू की खेती के प्रति रुचि कम है। ऐसे में लियाकत के प्रयासों से जिले के अन्य किसान भी प्रेरित होंगे।
इनका कहना है…
मैंने मेरे खेत में साढ़े तीन सौ पौधे लगा रखे हैं। ये सारे पौधे मैं श्रीगंगानगर से लेकर आया था। सालभर में इनसे मुझे एक लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है। सौर ऊर्जा से इनकी सिंचाई कर रहा है। पचास किलो खाद्य प्रत्येक पेड़ में देता हूं।
-लियाकत अली, किसान, बड़ागांव, झुंझुनूं