बेरवाल ने बताया कि रसोड़ा जोहड़ से मिले शिलालेख में मंदिर निर्माण का समय विक्रम संवत 701 व मंदिर पर आक्रमण का काल विक्रम संवत 1199 में भाद्रपति दूज लिखा मिला है। यानी ये मंदिर 498 साल अस्तित्व में रहा। शिलालेख संस्कृत भाषा की प्राचीन लिपि में लिखे गए हैं।
खंडेला में अद्र्ध नारीश्वर मंदिर का जिक्र पहले भी कई इतिहासकार व पुरातत्ववेता कर चुके हैं। गोरीशंकर ओझा, सुरजन सिंह, रतन लाल मिश्रा व दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तकों में इस मंदिर समूह का जिक्र किया था। सकराय के शिलालेखों में भी खंडेला के मंदिर समूहों के बारे में जानकारी मिलती है।
बेरवाल के अनुसार खंडित मूर्तियों की जल समाधि या विसर्जन की हिंदू परंपरा प्राचीन समय से रही है। संभवत: आक्रमण का शिकार होने पर खंडित हुई मूर्तियों को उस समय पानी से भरे जोहड़ों में विसर्जित किया गया था। यही वजह है कि मूर्तियां जोहड़ से मिली है। अनुमान है कि मंदिर जोहड़ के आसपास ही कहीं रहा होगा। पूर्व इतिहासकार व पुरातत्ववेता भी अपनी पुस्तकों में इस अद्र्धनारीश्वर मंदिर का जिक्र कर चुके हैं।
जोहड़ में अब तक मंदिर से जुड़े 28 अवशेष मिल चुके हैं। इनमें विष्णु के अलावा भगवान शिव की मूर्ति भी शामिल है। खुदाई में अन्य कई मूर्तियां व शिलालेख भी मिले हैं।
खंडेला के मंदिरों पर 1678 में मुगल शासक औरंगजेब ने भी आक्रमण किया था। इतिहासकार महावीर पुरोहित के अनुसार हमले की सूचना पर खंडेला राजा बहादुर सिंह के साथ छापोली नरेश सुजान सिंह सहित कई राजपूत राजा साथ हुए। जिनकी बहादुरी देख औरंगजेब के सेनापति दराब खां ने प्रस्ताव दिया कि वह मंदिरों के कलशों को हटाने दें तो युद्ध रुक सकता है। पर राजपूत नरेशों के इन्कार करने पर दोनों पक्षों में भयानक युद्ध हुआ। जिसमें जीते दराब खां ने यहां के मंदिरों को ध्वस्त किया था। पंडित झाबरमल शर्मा की पुस्तक सीकर का इतिहास के अनुसार ये युद्ध चैत्र महीने में विक्रम संवत 1735 यानी 1678 में हुआ था।
रसोड़ा तालाब में मिली मूर्तियों के परीक्षण के लिए पुरातत्व विभाग की टीम ने भी मौका मुआयना किया। टीम में पुरातत्व खनन विभाग के अधीक्षक विपिन गोजल, मुद्रा शास्त्र अधीक्षक प्रिंस उत्पल, इतिहासकार एमएल मीणा, पुरातत्व विशेषज्ञ गणेश बेरवाल शामिल रहे। मूर्ति व मंदिर निर्माण व विध्वंस की तिथि को लेकर सभी एकमत हैं।