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प्रीमियम सभी से लेकिन मुआवजा नाममात्र को

जिले में पौने पांच लाख किसान, नियमों में उलझे

सीकरJan 23, 2020 / 12:16 pm

Puran

सीकर. तालमेल में अटका प्रदेश के किसानों का ब्याज मुक्त लोन

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सीकर. फसल बीमा योजना के नियम किसानों के साथ ठगी कर रहे हैं। बीमा की प्रीमियम राशि तो किसान से प्रत्येक खेत में बोई गई अलग- अलग फसल के अनुसार प्रत्येक किसान से ली जाती है लेकिन जब खराबा होता है और क्लेम देने का नम्बर आता है तो कम्पनी पूरे उपखंड मुख्यालय के खराबे का आकलन करती है और उस हिसाब से हुए खराबे का क्लेम महीनों बाद किसान को चुकाती है। ऐसे में कई बार पाला पडऩे और खंड बारिश व अन्य कारणों से पूरे ब्लॉक में नुकसान नहीं होता और खेत का बीमा होने के बाद भी किसान को कम्पनी कोई क्लेम नहीं देती। ऐसे में खराबा होने के बाद भी किसान पुनर्भरण के दायरे में नहीं आ पाते जिससे किसान को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। गौरतलब है कि जिले में रबी सीजन के दौरान ओलावृष्टि और शीतलहर की चपेट में आने से किसानों को खासा नुकसान हो चुका है।

नहीं मिल पाता पुनर्भरण

बीमा कम्पनी अलग-अलग फ सलों पर बीमे का क्लेम पास करती हैं जिसमें संंबंधित क्षेत्र में फसल 90 फ ीसदी खराब होने पर उस वर्ष की तय फसल राशि के अनुसार प्रति हैक्टेयर की दर से पूरा क्लेम दिया जाता है। खराबे का आकलन ब्लॉक स्तर पर होने से ज्यादातर खराबे का प्रतिशत 50 से 60 फ ीसदी पर ही सिमट कर रह जाता है जिससे बीमा धारक किसान की पूरी फसल खराब होने पर भी उसे मामूली क्लेम राशि ही मिलती है।
ऐसे देती है कम्पनी क्लेम
उदाहरण के तौर पर एक ब्लॉक में दस हजार हैक्टेयर भूमि पर खेती हुई, पाले या खंड बारिश से पांच हजार हैक्टेयर की शत प्रतिशत फसल खराब हो गई और पांच हजार हैक्टेयर पर कोई खराबा नहीं हुआ। अब कम्पनी औसत खराबा 50 फ ीसदी मानती है और खराबे वाले किसानों को महज 50 प्रतिशत खराबे का क्लेम ही दिया जाता है।

डेढ लाख किसान करवाते हैं फ सलों का बीमा

जिले में रबी और खरीफ की दोनों प्रमुख फ सलों में औसत डेढ लाख तक बीमा होते हैं। फसलों में खराबा होने पर पहले पूरे क्षेत्र की गिरदावरी होती है, उसके बाद प्रशासन रिपोर्ट तैयार करवाता है। कई महीनों बाद बीमा कम्पनी किसान को क्लेम की राशि देती है। भुगतान में देरी के कारण फसल खराबे की मार से आहत किसानों के पास अगली फसल बोने के लिए लागत राशि तक नहीं होती है जिससे कई बार उनके खेत खाली ही पड़े रह जाते हैं।
सरकार तय करती है नियम
बीमा कम्पनी ब्लॉक स्तर पर ही खराबे का क्लेम औसत निकाल कर तय करती है। बीमा की शर्तें आदि सरकार स्तर पर तय होता है। जिले में अभी तक बीमा कम्पनी ने नियमानुसार भुगतान किए हैं।
एसआर कटारिया, उपनिदेशक कृषि

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