वर्तमान में एक औसत मट्टी सतर रूपये में बेचते है। मिट्टी की लागत अधिक होने के कारण हम इसमें कुछ ज्यादा बचत नहीं होती है। लेकिन पुश्तैनी काम होने के कारण वे इस काम को नहीं छोड़ पा रहे हैं। साथ ही दूसरा रोजगार भी नहीं मिल रहा है। आसाराम के पुत्र भी इसी काम में उनका हाथ बंटा रहे है। आसानी से मिट्टी नहीं मिलने व मटकी पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी महंगी बिकने पर कुंभकारों का धीरे-धीरे मटकी उद्योग से मोहभंग हो रहा है। इस पर अब इने-गिने परिवार ही मटकियां बनाने का काम कर रहे है।
सरकारी संरक्षण की दरकार
कुंभकारों के अनुसार यह हस्तशिल्प कला का ही एक नमूना है। आधुनिक चकाचौंध के बीच मटकियों की मांग वैसे भी कम हो रही है। ऐसे में सरकार इनको संरक्षण दें और मिट्टी की उपलब्धता के साथ आर्थिक सहयोग दे तो कई परिवारों का पालन-पोषण हो सकता है। मिट्टी उद्योग को सरकार की ओर से कोई संरक्षण व संर्वद्धन नहीं दिया जा रहा है। दिन ब दिन मटकी निर्माण महंगा हो रहा है। वही, कमाई कम हो रही है। इससे कुंभकारों का मटकी निर्माण के कार्य से मोहभंग हो रहा है। सरकार उद्योग को संरक्षण दें।
आसाराम प्रजापत, शेखीसर