scriptकुंभकार की रचनाओं को मिलने लगा आकार,गर्मी की दस्तक होते ही बनने लगे देसी ‘फ्रिज’ | preparing of summer strat in sikar | Patrika News
सीकर

कुंभकार की रचनाओं को मिलने लगा आकार,गर्मी की दस्तक होते ही बनने लगे देसी ‘फ्रिज’

वर्तमान में एक औसत मट्टी सतर रूपये में बेचते है। मिट्टी की लागत अधिक होने के कारण हम इसमें कुछ ज्यादा बचत नहीं होती है।

सीकरFeb 20, 2018 / 04:48 pm

vishwanath saini

patrika news

रोलसाहबसर. जल को शीतल करने के लिए प्रसिद्ध शेखीसर की मटकियों के निर्माण में कुम्भकार परिवार जुट गए हैं। शेखीसर की मटकियां भोजदेसर, शेखीसर, कल्याणपुरा, हूडेरा, थेथलियां रोलसाहबसर सहित आस-पास के कई गांवों में बिकने के लिए जाती है। इसका कारण लम्बे समय तक पानी शीतल रहना है। गर्मी में इनकी मांग अधिक रहने पर कुंभकार माघ व फाल्गुन मास की शुरुआत के साथ ही मटकियां बनाने में जुट जाते हैं। शेखीसर निवासी कुंभकार आसाराम ने बताया कि हम सीकर से मिट्टी लेकर आते हैं।

 

वर्तमान में एक औसत मट्टी सतर रूपये में बेचते है। मिट्टी की लागत अधिक होने के कारण हम इसमें कुछ ज्यादा बचत नहीं होती है। लेकिन पुश्तैनी काम होने के कारण वे इस काम को नहीं छोड़ पा रहे हैं। साथ ही दूसरा रोजगार भी नहीं मिल रहा है। आसाराम के पुत्र भी इसी काम में उनका हाथ बंटा रहे है। आसानी से मिट्टी नहीं मिलने व मटकी पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी महंगी बिकने पर कुंभकारों का धीरे-धीरे मटकी उद्योग से मोहभंग हो रहा है। इस पर अब इने-गिने परिवार ही मटकियां बनाने का काम कर रहे है।

 

patrika news

सरकारी संरक्षण की दरकार
कुंभकारों के अनुसार यह हस्तशिल्प कला का ही एक नमूना है। आधुनिक चकाचौंध के बीच मटकियों की मांग वैसे भी कम हो रही है। ऐसे में सरकार इनको संरक्षण दें और मिट्टी की उपलब्धता के साथ आर्थिक सहयोग दे तो कई परिवारों का पालन-पोषण हो सकता है। मिट्टी उद्योग को सरकार की ओर से कोई संरक्षण व संर्वद्धन नहीं दिया जा रहा है। दिन ब दिन मटकी निर्माण महंगा हो रहा है। वही, कमाई कम हो रही है। इससे कुंभकारों का मटकी निर्माण के कार्य से मोहभंग हो रहा है। सरकार उद्योग को संरक्षण दें।
आसाराम प्रजापत, शेखीसर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो