scriptरामनवमी विशेष: हर्ष पर है भगवान राम की दो सबसे प्राचीन मूर्तियां | Ram Navami 2024 Special Story Of 2 Oldest Idols Of Lord Rama On Harsh | Patrika News
सीकर

रामनवमी विशेष: हर्ष पर है भगवान राम की दो सबसे प्राचीन मूर्तियां

हर्ष पर स्थित ये मूर्तियां 1050 साल पहले बने शिव मंदिर में दीवारों पर लगाई गई थी। जो अब भी वहां स्थापित है।

सीकरApr 17, 2024 / 12:32 pm

Akshita Deora

जन आस्था के प्रतीक भगवान राम के जन्म के पर्व रामनवमी पर बुधवार को आस्था व उल्लास की बयार बहेगी। राम मंदिरों में धार्मिक आयोजनों को धूम रहेगी। इस बीच आज हम आपको भगवान राम की उन दो मूर्तियों के दर्शन करवा रहे हैं जो अब तक ज्ञात मूर्तियों में सबसे पुरानी है। हर्ष पर स्थित ये मूर्तियां 1050 साल पहले बने शिव मंदिर में दीवारों पर लगाई गई थी। जो अब भी वहां स्थापित है।

भाई व पत्नी के साथ हैं भगवान राम

हर्ष स्थित दो मूर्तियों में एक में भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ खड़े हैं। उनके सिर पर मुकुट व हाथ में धनुष व बाण है। माला पहले भगवान राम इस मूर्ति में राजा के रूप में दर्शाए गए हैं। इसी तरह दूसरी मूर्ति में वे पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ नाव में खड़े हैं। उनके हाथ में नाव चलाने का चंपू है। पुरातत्व वेत्ता गणेश बेरवाल ने बताया कि ये मूर्तियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।

इसलिए है सबसे पुरानी

दोनों तस्वीर उपलब्ध करवाने वाले पुरातत्ववेत्ता गणेश बेरवाल ने बताया कि भगवान राम व कृष्ण को विष्णु का अवतार काफी पहले से माना गया था। मूर्ति रूप में उनकी व्यापक पूजा 15वीं सदी में रामनुजाचार्य की शिष्य परंपरा में 14वीं पीढ़ी के शिष्य स्वामी रामानंद के बाद शुरू हुई। यही वजह है कि 15वीं सदी से पहले की भगवान राम की मूर्ति बेहद दुर्लभ है। हर्ष से 10वीं सदी में मिली ये राम की मूर्ति सबसे पुरानी कही जा सकती है।

चौहान राजा ने 961 में रखी थी मंदिर की नींव

इतिहासविदों के अनुसार हर्ष का संबंध पौराणिक काल से माना जाता है। मान्यता है कि वृत्तासुर संग्राम में इंद्र बाकी देवताओं के साथ इसी पहाड़ पर छुपे थे। उसे मारने पर देवताओं की हर्ष से की गई भगवान शिव की स्तुति के कारण ही इस पर्वत शिखर का नाम हर्ष कहलाया। जय हर्षनाथ- जय जीण भवानी पुस्तक के अनुसार अजमेर सांभर के चौहान वंश के शासक सिंहराज ने विक्रम संवत 1018 यानी सन 961 में हर्षनाथ के रूप में शिव मंदिर की नींव रखी। संवत 1030 में लोकार्पण के साथ पहाड़ की गोद में हर्षा नगरी बसाई गई। इतिहासकार डा. सत्यप्रकाश ने इसे अनन्ता नगरी भी कहा। यहां सदा बहने वाली चंद्रभागा नदी भी थी। मंदिर का निर्माण सुहास्तु के सलाहकार सांदीपिता के मार्गदर्शन में वास्तुकार वाराभद्र ने वैज्ञानिक ढंग से किया था।

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