झाबर सिंह की पूरी कहानी
-राजस्थान के सीकर जिले के थोई निवासी किसान झाबर सिंह ने वर्ष 1979 में खेती करना शुरू किया।
-शुरुआत में गोबर खाद के साथ उर्वरक व उन्नत बीज के प्रयोग से की। इससे हर साल पैदावार
बढ़ती गई।
-इसके बाद आकाशवाणी केन्द्र जयपुर से खेती के कार्यक्रम सुनने के साथ-साथ हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के किसान मेलों में हिस्सा लेने लगे।
-वर्ष 1986 तक लगातार फार्मदर्शन, बागवानी, फसल उत्पादन एवं सामाजिक वानिकी से प्रभावित होकर साथी किसानों को 50 हजार पौधे बांटे।
-अपने खर्च पर पूसा इक्रीसेट, बंगलूरू आदि कृषि संस्थानों का भ्रमण किया। वर्ष 1987 में सर्वप्रथम गोबर गैस संयत्र स्थापित किया।
-कृषि संस्थानों का भ्रमण करने के बाद किसान झाबर की आमदनी और आत्मविश्वास दोनों बढऩे लगे। खेती में पैदावार भी बढ़ी।
फिर बागवानी की ओर ध्यान
वर्ष 1998 तक किसान झाबर मल परम्परागत खेती ही किया करते थे। फिर उद्यानिकी की ओर कदम बढ़ाते हुए दो हैक्टेयर में आंवला, 1 हैक्टेयर बेर, बिल्व व पपीता का बगीचा स्थापित करवाया।
-वर्ष 2000 ड्रिप सिस्टम तकनीक का इस्तेमाल कर बगीचा व नर्सरी स्थापित की। वन विभाग भी इनसे पौधे खरीदने लगा।
झाबर सिंह की आय का गणित
वर्तमान समय में आंवला से 3 लाख, नींबू से 15 हजार, बाजरा से 50 हजार, मूंगफली से 2 लाख,गेहँू से 1 लाख ,सरसों से 25 हजार,जौ से 50 हजार, खीरा से 2 लाख,मिर्च से 2 लाख, कद्दू से 2लाख तथा तरबूज से डेढ़ लाख तक की सालाना आय हो रही है, जो करीब 14 लाख 90 हजार रुपए है। ऐसे में झाबर सिंह की प्रतिमाह की आय करीब सवा लाख रुपए है।
शेननेट व सब्जी उत्पादन
सीकर जिले के प्रगतिशील किसानों में से शामिल झाबर सिंह ने बताया कि वर्ष 2012 में शेननेट की स्थापना करवाई। इसमें सर्वप्रथम खीरे का रिकार्ड तोड़ उत्पादन हुआ था। खीरे से 6.10 लाख की आमदनी हुई थी। इसके अलावा खुले में मिर्च, तरबूज, ककड़ी व टमाटर का उत्पादन होता है।
सोलर के सरताज
उन्होंने बताया कि सौर ऊर्जा पम्प परियोजना का लाभ लेते हुए फसल की सुचारू रूप से सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा पम्प की स्थापना की है। इसके लिए तत्कालिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा सोलर सरताज पुरस्कार से सम्मानित किया था।