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सिंगरौली

अस्पतालों में इलाज की समस्या हुई लाइलाज, सरकारी के साथ कंपनियों के अस्पताल भी कर रहे निराश

समय पर नहीं मिल रहे चिकित्सक

सिंगरौलीFeb 29, 2020 / 01:50 pm

Amit Pandey

Case of Vindhya Hospital in Singrauli

Case of Vindhya Hospital in Singrauli

सिंगरौली. जिला अस्पताल की ओपीडी में चिकित्सक नदारद मिले तो गहिलरा के रवींद्र ने विंध्य चिकित्सालय की रूख किया। बेहतर इलाज की उम्मीद वहां पहुंचे रवींद्र उस समय ठगे से रह गए, जब पर्ची कटाने के बाद उन्हें मालूम हुआ कि यहां भी चिकित्सक उपलब्ध नहीं है। घर से 20 किलोमीटर की दूरी तय कर अस्पताल पहुंचे इस मरीज को वहां से भी वापस लौटना पड़ा। रवींद्र की समस्या महज एक बानगी है। यहां जिले में स्वास्थ्य सुविधा की कुछ ऐसी ही तस्वीर हमेशा देखने को मिलती है।
जिला अस्पताल में जब मरीजों को उपचार नसीब नहीं होता है तो कंपनियों के अस्पताल पर उम्मीद की आस बधी रहती है लेकिन अब कंपनियों के अस्पताल भी निराश कर रहे हैं। यहां भी चिकित्सक नहीं बैठते हैं। बात चाहे विंध्य चिकित्सालय की हो या फिर नेहरू अस्पताल की।यहां भी चिकित्सकों की लापरवाही आमबात हो गई है। बेहतर उपचार के लिए दौड़ लगा रहे मरीजों को पर्चा कटाने के बाद निराश होना पड़ता है।
जानकारी के लिए बतादें कि चिकित्सक व संसाधनों की कमी से जूझ रहे जिला अस्पताल में इलाज के लिए मरीजों को आफत की दौर से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें यह उम्मीद रहती है कि सरकारी में नहीं लेकिन कंपनियों के अस्पताल में पैसे खर्च करने के बाद बेहतर उपचार मिलेगा। मगर, हकीकत जिला अस्पताल से भी बदतर होती जा रही है। हालात यह हैं कि मरीज पर्चा कटाने के बाद संबंधित डॉक्टर के पास लगा देते हैं।
दोपहर तक मरीजों को पता चलता है कि चिकित्सक नहीं बैठेंगे। एेसी स्थिति में मरीज न केवल निराश होते हैं बल्कि चिकित्सक सहित अस्पताल के जिम्मेदारों को कोसते रहते हैं क्योंकि यहां मरीजों को उपचार व दवाओं के लिए पैसा खर्च करना पड़ता हैं। विंध्य चिकित्सालय के लापरवाह चिकित्सकों के खिलाफ एक्शन लेने की जहमत जिम्मेदार अधिकारी नहीं उठा रहे हैं। आलम यह है कि चिकित्सालय में हर रोज लापरवाही देखने को मिल जाएगी।
महज 20 पर्चा में ओपीडी
देखा जाए तो कंपनियों के अस्पतालों में मरीजों को देखने के लिए केवल 20 पर्चा लगते हैं। आश्चर्य इस बात के लिए है कि 21 वें नंबर में पर्चा लेकर गंभीर मरीज चिकित्सालय पहुंचता है तो उसे बिना इलाज वापस लौटना पड़ेगा। एेसा इसलिए कि कंपनियों के अस्पतालों में बहुत पहले से नियम कायदे तय कर लिए गए हैं। बतादें कि विंध्य व नेहरू चिकित्सालय में ज्यादातर गंभीर मरीज पहुंचते हैं। जब तक मरीजों की हालत सामन्य रहती है तब तक मरीज जिला अस्पताल में इलाज करा लेते हैं। हालत गंभीर होने के बाद ही विंध्य व नेहरू चिकित्सालय की शरण लेते हैं। अब हैरत इस बात की है कि एेसी परिस्थितियों में जब डॉक्टर नहीं मिलेंगे तो मरीजों की जान पर खतरा मडऱाना जाहिर सी बात है। अधिकांश मरीजों को आफत की दौर से गुजरना पड़ा है।
बाहरी मरीजों से छुट्टी का बहाना
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि कंपनियों के अस्पतालों में बाहरी मरीजों से चिकित्सकों के छुट्टी पर होने का हवाला दिया जाता है। वहीं कंपनी के कर्मियों का उपचार होता है। एेसे में यह समझ आता है कि कंपनियों के चिकित्सालय में बाहरी मरीजों को बेहतर उपचार की उम्मीद बेकार है। यहां डॉक्टर कंपनी के कर्मियों के अलावा बाहरी मरीजांें को देखने में आनाकानी करते हैं। यही कारण है कि बाहरी मरीजों को सही जानकारी नहीं दी जाती है। इस गंभीर समस्या को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों को ध्यान देने की जरूरत है। विंध्य चिकित्सालय के चिकित्सकों की लापरवाही मरीजों को रास नहीं आ रही है।
क्या कहते हैं मरीज:
केस-एक
विंध्य चिकित्सालय परिसर में गहिलरा गांव के रवीन्द्र कुमार ने बताया कि शुक्रवार को डॉ. दत्ता के पास दिखाना था। पर्चा लगाने के बाद पता चला कि डॉक्टर नहीं बैठेंगे। काफी देर तक आसपास के लोगों से पूछताछ करने के बाद इलाज के लिए पहुंचा मरीज निराश होकर वापस लौट गया।
केस-दो
तियरा गांव के प्रदीप ने बताया कि बीते एक सप्ताह से तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है। पहले सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। इसके बाद विंध्य चिकित्सालय में आए तो यहां डॉक्टर के पास २० पर्चा लग गए थे। अब शनिवार को इलाज के लिए आना पड़ेगा।

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