देखा जाए तो कंपनियों के अस्पतालों में मरीजों को देखने के लिए केवल 20 पर्चा लगते हैं। आश्चर्य इस बात के लिए है कि 21 वें नंबर में पर्चा लेकर गंभीर मरीज चिकित्सालय पहुंचता है तो उसे बिना इलाज वापस लौटना पड़ेगा। एेसा इसलिए कि कंपनियों के अस्पतालों में बहुत पहले से नियम कायदे तय कर लिए गए हैं। बतादें कि विंध्य व नेहरू चिकित्सालय में ज्यादातर गंभीर मरीज पहुंचते हैं। जब तक मरीजों की हालत सामन्य रहती है तब तक मरीज जिला अस्पताल में इलाज करा लेते हैं। हालत गंभीर होने के बाद ही विंध्य व नेहरू चिकित्सालय की शरण लेते हैं। अब हैरत इस बात की है कि एेसी परिस्थितियों में जब डॉक्टर नहीं मिलेंगे तो मरीजों की जान पर खतरा मडऱाना जाहिर सी बात है। अधिकांश मरीजों को आफत की दौर से गुजरना पड़ा है।
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि कंपनियों के अस्पतालों में बाहरी मरीजों से चिकित्सकों के छुट्टी पर होने का हवाला दिया जाता है। वहीं कंपनी के कर्मियों का उपचार होता है। एेसे में यह समझ आता है कि कंपनियों के चिकित्सालय में बाहरी मरीजों को बेहतर उपचार की उम्मीद बेकार है। यहां डॉक्टर कंपनी के कर्मियों के अलावा बाहरी मरीजांें को देखने में आनाकानी करते हैं। यही कारण है कि बाहरी मरीजों को सही जानकारी नहीं दी जाती है। इस गंभीर समस्या को लेकर जिम्मेदार अधिकारियों को ध्यान देने की जरूरत है। विंध्य चिकित्सालय के चिकित्सकों की लापरवाही मरीजों को रास नहीं आ रही है।
केस-एक
विंध्य चिकित्सालय परिसर में गहिलरा गांव के रवीन्द्र कुमार ने बताया कि शुक्रवार को डॉ. दत्ता के पास दिखाना था। पर्चा लगाने के बाद पता चला कि डॉक्टर नहीं बैठेंगे। काफी देर तक आसपास के लोगों से पूछताछ करने के बाद इलाज के लिए पहुंचा मरीज निराश होकर वापस लौट गया।
तियरा गांव के प्रदीप ने बताया कि बीते एक सप्ताह से तबीयत में सुधार नहीं हो रहा है। पहले सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। इसके बाद विंध्य चिकित्सालय में आए तो यहां डॉक्टर के पास २० पर्चा लग गए थे। अब शनिवार को इलाज के लिए आना पड़ेगा।