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सिंगरौली

धान के बाद मक्का दूसरी मुख्य फसल, फिर भी नहीं मिल रही तवज्जो

बोवनी के वक्त न ही बीज की व्यवस्था, खरीदी के वक्त जिला नजरअंदाज …..

सिंगरौलीJun 16, 2021 / 11:27 pm

Ajeet shukla

corn second major crop after paddy in Singrauli, still no attention

corn second major crop after paddy in Singrauli, still no attention

सिंगरौली. धान के बाद जिले को कोई दूसरी मुख्य फसल है तो वह है मक्का। खरीफ में धान के बाद मक्का की ही सबसे अधिक रकबे में बोवनी होती है। इसके बावजूद मक्का की खेती करने वाले किसानों को तवज्जो नहीं मिल रही है। सिस्टम द्वारा किसानों को न ही सुविधाएं दी जा रही हैं और न ही उन्हें कोई खास तवज्जों मिल रही है।
मक्का की खेती को लेकर बोवनी के वक्त से ही सिस्टम में उदासीनता देखने को मिल रही है, जो समर्थन मूल्य पर खरीदी तक जारी रहती है। जाहिर सी बात है कि मक्का की खेती को लेकर उन्नत बीज सहित अन्य सुविधाएं मिले और खरीदी के वक्त समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए तो किसान उत्साहित हों और रकबा में बढ़ोत्तरी हो। मक्का की खेती को लेकर सिस्टम भले ही उदासीन हो, लेकिन जिले के किसान लगातार रकबा बढ़ा रहे हैं।
कृषि विभाग ने अब की बार 30 हजार हेक्टेयर में मक्का की खेती होने का अनुमान लगाया है। माना जा रहा है कि किसानों को मौसम ने बोवनी का मौका दिया तो अब की बार जिले में 30 हजार हेक्टेयर से अधिक रकबे में मक्का की बोवनी होगी। यह हाल तब है कि जबकि किसानों को मक्का का उन्नत किस्म का बीज तक मुहैया नहीं होता है। उनके द्वारा घर रखे उपज को ही बीज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
खुद अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि मक्का की बोवनी का रकबा फसल दर फसल बढ़ रहा है। वर्ष 2017 में जहां मक्का का रकबा जहां केवल 16 हजार हेक्टेयर था। वहीं वर्ष 2021 में बोवनी का रकबा दो गुना होने की स्थिति में पहुंच गया है। यह हाल तब है जबकि मक्का की उपज के खरीदार नहीं हैं और न ही सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए जिले को शामिल कर रही है।
किसानों की माने तो मक्का की उपज का इस्तेमाल केवल केवल निजी उपभोग तक सीमित है। केवल 10 फीसदी उपज भुट्टा के रूप बाजार तक पहुंचती है। इसके अलावा बाकी की उपज किसानों द्वारा खुद के उपभोग व मवेशियों को खिलाने में करते हैं। बहुत कम उपज स्थानीय बाजार में बिकती है। उसके भी किसानों को औने-पौने दाम ही मिलते हैं।
कृषि अधिकारी खुद इस बात को मानते हैं कि मक्का की समर्थन मूल्य पर खरीदारी शुरू हो और इसका व्यावसायिक इस्तेमाल बढ़े तो किसान तेजी के साथ बोवनी का रकबा बढ़ाएंगे। इसके लिए उद्यमियों को स्थानीय बाजार तक लाना होगा। हालांकि इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को दी गई है, लेकिन वहां भी प्रयास केवल खानापूर्ति तक सीमित है।
केवल मंडी में होती है खरीदी
जिले में मक्का की खरीदारी समर्थन मूल्य पर नहीं की जाती है। मंडी के माध्यम खरीदारी की जाती है, लेकिन उसके लिए भी केवल सीमित केंद्र बनाए जाते रहे हैं। जिले में मंडी के माध्यम से मक्का की खरीदारी के लिए केवल 5 खरीदी केंद्र बनाते रहे हैं। नए कृषि कानून लागू होने के बाद से मंडी के माध्यम से खरीदारी होने की संभावना पर अब की बार विराम लगता मालूम पड़ रहा है।
उपज का व्यावसायिक उपयोग संभव
बतौर विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. जय सिंह बताते हैं कि कोदो-कुटकी जैसे अनाज की तरह ही अब मक्का भी गरीबों का भोजन नहीं रह गया है। इसकी मांग भी अब बड़े-बड़े होटलों में बढ़ रही है। इसके अलावा मुर्गी पालन करने वालों के लिए भी मक्का का दाना मुर्गियों के आहार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। जरूरत इससे जुड़े उद्यमियों का यहां तक लाने की है।
पिछले तीन फसल में हुई खरीदी
वर्ष- खरीदी- रकबा- उत्पादकता प्रति हेक्टेयर
2017-18- 598- 16000- 16.16 क्विंटल
2018-19- 2445- 22000- 18 क्विंटल
2019-20- 2900- 25000- 22 क्विंटल
2020-21- — – 28000- 22 क्विंटल

वर्जन –
पूरे एक वर्ष में दो बार मक्का की फसल लगाते हैं। उत्पादन भी अच्छा मिलता है, लेकिन कीमत अच्छी नहीं मिलती है। मंडी के माध्यम से खरीदी की जा रही थी, लेकिन केंद्र इतनी दूर होते हैं कि कम कीमत मिलने के बावजूद बाजार में ही बेचना आसान लगता है। नए कृषि कानून लागू होने के बाद अब मंडी के माध्यम से खरीदारी होगी भी या नहीं, इस बार कुछ कहा नहीं जा सकता है।
– बाबूराम कुशवाहा, प्रगतिशील किसान ओडग़ड़ी।
वर्जन –
मक्का की बोवनी का रकबा लगातार हर फसल चक्र में बढ़ रहा है। इस बार भी रकबा बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। पूरी उम्मीद है कि रकबा बढ़ेगा। बीज के लिए निजी व्यापारियों को कहा गया है कि वह मक्का की उन्नत किस्म का बीज रखें।
– आशीष पाण्डेय, उपसंचालक कृषि सिंगरौली।

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