दरअसल, बारिश में अस्पताल की छत से लगातार पानी टपकता है। जिससे मरीज काफी परेशान होते हैं। पानी रिसने के कारण छत भी कमजोर हो जाता है। जिससे मरीजों को हादसा होने का भय बना रहता है। बतादें कि छत पर लगे पंखे से होकर पानी नीचे वार्ड में मरीजों पर गिरता है। इसी हालत में रहकर उपचार कराने के लिए जिला अस्पताल के मरीज मजबूर हो जाते हैं। जबकि मेंटीनेंस के नाम पर लाखों रुपए खर्च किया जाता है।
अफसोस की बात यह है कि देवसर, चितरंगी, माड़ा, सरई, निगरी, निवास, मोरवा से जिला अस्पताल में उपचार के लिए आने वाले मरीजों के लिए वही ऊर्जाधानी है जो जिला बनने से पहले थी। ग्यारह साल पहले से हुए बदलाव का एहसास नहीं हो पा रहा है। यहां के गरीब आदिवासी लोगों को समुचित उपचार दावा खोखला साबित होता है।
कई जगह टपकती है अस्पताल की छत
जिला अस्पताल का भवन काफी जर्जर हो गया है। जिला अस्पताल का शायद ही ऐसा कोई कमरा होगा जिसकी छत से पानी नहीं टपकता होगा। खासकर जहां मरीज भर्ती होते हैं वहां जगह-जगह पानी टपकता है। इस दौरान मरीज को इधर-उधर अपना बेड हटाने पड़ते हैं। जिससे वे भीगे बीस्तर में ही रात गुजारते हैं। ऐसे में उन्हें नए अस्पताल की जरूरत है, लेकिन मरीजों की परवाह सरकारी तंत्र को बिल्कुल नहीं हैं।
जिला अस्पताल का भवन काफी जर्जर हो गया है। जिला अस्पताल का शायद ही ऐसा कोई कमरा होगा जिसकी छत से पानी नहीं टपकता होगा। खासकर जहां मरीज भर्ती होते हैं वहां जगह-जगह पानी टपकता है। इस दौरान मरीज को इधर-उधर अपना बेड हटाने पड़ते हैं। जिससे वे भीगे बीस्तर में ही रात गुजारते हैं। ऐसे में उन्हें नए अस्पताल की जरूरत है, लेकिन मरीजों की परवाह सरकारी तंत्र को बिल्कुल नहीं हैं।
सभी मरीजों को रखते हैं एक साथ
बारिश के सीजन में संक्रमण का खतरा मोल लेते हैं। हालात यह है हर तरह के मरीजों को सामान्य मरीजों के साथ रखा जाता है। डाक्टर बताते हैं कि खतरा तो है लेकिन मजबूरी भी है। जिसके कारण खतरा मोल लेना पड़ रहा है। अस्पताल में लाखों की दवाइयां भी रखी हुई हैं, जिस पर बारिश का पानी टपकता है। जिलेभर में स्वास्थ्य केन्द्रों में हालात इससे भी बदतर है। खासकर चितरंगी, देवसर में मरीजों को उपचार के लिए भटकना पड़ता है। यहां न तो समुचित बेड हैं और नहीं जरूरी दवाएं।
बारिश के सीजन में संक्रमण का खतरा मोल लेते हैं। हालात यह है हर तरह के मरीजों को सामान्य मरीजों के साथ रखा जाता है। डाक्टर बताते हैं कि खतरा तो है लेकिन मजबूरी भी है। जिसके कारण खतरा मोल लेना पड़ रहा है। अस्पताल में लाखों की दवाइयां भी रखी हुई हैं, जिस पर बारिश का पानी टपकता है। जिलेभर में स्वास्थ्य केन्द्रों में हालात इससे भी बदतर है। खासकर चितरंगी, देवसर में मरीजों को उपचार के लिए भटकना पड़ता है। यहां न तो समुचित बेड हैं और नहीं जरूरी दवाएं।
नाम के लिए पुरुष व महिला वार्ड
जिला अस्पताल में दो वार्ड हैं। ये केवल नाम मात्र के लिए पुरूष और महिला वार्ड बनाए गए हैं। हालात यह है कि पुरूष महिला मरीजों को एक साथ रखा जाता है। इसका वजह है कि जिला अस्पताल में जगह नहीं है। बेड खाली न होने की स्थिति में जमीन पर भर्ती होकर उपचार कराना पड़ता है। क्षमता से ज्यादा मरीज हो जाते हैं तो उनका उपचार भी ठीक से नहीं हो पाता।
जिला अस्पताल में दो वार्ड हैं। ये केवल नाम मात्र के लिए पुरूष और महिला वार्ड बनाए गए हैं। हालात यह है कि पुरूष महिला मरीजों को एक साथ रखा जाता है। इसका वजह है कि जिला अस्पताल में जगह नहीं है। बेड खाली न होने की स्थिति में जमीन पर भर्ती होकर उपचार कराना पड़ता है। क्षमता से ज्यादा मरीज हो जाते हैं तो उनका उपचार भी ठीक से नहीं हो पाता।