अजमेर के लोहाखान खेत्र में आजादी से पूर्व कभी लोहा निकाला जाता था। यहां लोहे की खान हुआ करती थी जिससे शहर के इस क्षेत्र का नाम लोहाखान पड़ा। समय गुजरने के साथ यहां बस्ती बसने से लोहा निकलना बंद हो गया और धीरे-धीरे खान भी बंद हो गई। अब यहां मात्र खान के अवशेष बचे हैं।
कुछ क्षेत्रवासियों ने बताया कि हैं कि वे यहां यहां करीब 50-60 वर्षों से निवास कर रहे हैं। तब यहां पूरी तरह जंगल हुआ करता था। उनके नाना-नानी व दादा-दादी के समय कभी यहां लोहे की खान हुआ करती थी। इस खान से लोहा निकाला जाता था, जिसे वर्तमान लोहागल क्षेत्र में ले जाकर गलाया जाता था। वहीं लोहे का सामान बनाया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे यहां लोगों के बसने के कारण खान बंद हो गई। क्षेत्रवासी बताते हैं कि ये खदानें काफी अन्दर तक हैं। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, खदानों तक जाने के रास्ते भी बंद हो गए। अब तो वहां तक पहुंचना ही मुश्किल हो गया है। खदानें भी कूड़े-कचरे में तब्दील हो रही है। वहां अब चमगादड़ व कबूतरों का ही आवास रह गया है। यदि प्रशासन इस ओर ध्यान दे तो उजाड़ होती ऐतिहासिक खदान को बचाया जा सकता है तथा इसे पर्यटक के लिए भी खोला जा सकता है।
कुछ क्षेत्रवासियों ने बताया कि हैं कि वे यहां यहां करीब 50-60 वर्षों से निवास कर रहे हैं। तब यहां पूरी तरह जंगल हुआ करता था। उनके नाना-नानी व दादा-दादी के समय कभी यहां लोहे की खान हुआ करती थी। इस खान से लोहा निकाला जाता था, जिसे वर्तमान लोहागल क्षेत्र में ले जाकर गलाया जाता था। वहीं लोहे का सामान बनाया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे यहां लोगों के बसने के कारण खान बंद हो गई। क्षेत्रवासी बताते हैं कि ये खदानें काफी अन्दर तक हैं। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई, खदानों तक जाने के रास्ते भी बंद हो गए। अब तो वहां तक पहुंचना ही मुश्किल हो गया है। खदानें भी कूड़े-कचरे में तब्दील हो रही है। वहां अब चमगादड़ व कबूतरों का ही आवास रह गया है। यदि प्रशासन इस ओर ध्यान दे तो उजाड़ होती ऐतिहासिक खदान को बचाया जा सकता है तथा इसे पर्यटक के लिए भी खोला जा सकता है।
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पहाड़ी पर बन गए मकान लोहे की खान बंद होने के बाद से खान के आसपास पहाड़ी क्षेत्र पर भी लोगों ने मकान बना लिए हैं। इससे यहां की पूरी पहाड़ी अनधिकृत मकानों से घिर गई है। वहीं पहाड़ी को काटकर रास्ते भी बना लिए हैं। यह भी पढ़ें
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इनका कहना है सबसे पहले हम यहां आकर बसे थे। उस समय पूरे क्षेत्र में जंगल हुआ करता था। हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि कभी यहां खान से लोहा निकाला जाता था। मैं भी खान के दो किलोमीटर अन्दर तक गया हूं। पहले खान के अन्दर पानी भी हुआ करता है। अब खान बंद है।-अब्दुल सलीम, क्षेत्रवासी
हमारे नाना-नानी कहा करते हैं कि आजादी के पहले यहां खदानों से लोहा निकाला जाता था। लेकिन मैनें कभी लोहा निकलता नहीं देखा।
-उमर खान, क्षेत्रवासी
-उमर खान, क्षेत्रवासी