लूर जैसी परम्पराओं को बिसराया तो खो देंगे अपनी पहचान
जोधपुरPublished: Mar 02, 2023 06:08:48 pm
प्रसंगवश


लूर जैसी परम्पराओं को बिसराया तो खो देंगे अपनी पहचान
संदीप पुरोहित
लूर एक विशिष्ट सामूहिक लोकनृत्य है, जिसमें महिलाएं गाते-नाचते अपने विचारों को अभिव्यक्ति देती हैं
ती ज-त्योहार से लेकर हर छोटे-बड़े आयोजन महज आयोजन ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति से जुड़ाव रखने व अपणायत को बचाए रखने का बेहतरीन सेतु भी होते हैं। ऐसे सेतु जो परम्पराओं को पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाए रखने में भी आगे रहते हैं। इनमें जाति व वर्ग-समुदाय का भेद कहीं आड़े नहीं आता। होली नजदीक है। राजस्थान का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं, जहां होली के स्थानीय आयोजनों की कोई खासियत न हो। एक दौर था जब होली नजदीक आने के एक पखवाड़े पहले ही ढप-चंग की थाप सुनाई देने लगती थी। होली की मस्ती में फाल्गुन में गांव-गांव में गेर, फाग गायन और लूर की धूम रहती थी। पर समय बदलने के साथ आज न केवल लोगों की स्मृति से ये आयोजन दूर होते जा रहे हैं बल्कि ऐसा लगने लगा है कि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो होली की मस्ती का दौर भूली-बिसरी बातें बन कर रह जाएगा।