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संरक्षण मांग रहा खानपुरा का तालाब

नैनवां के पास खानपुरा गांव का पांच किमी क्षेत्र में फैला रियासतकालीन खानपुरा तालाब प्राचीन धरोहर है। पुरखों से मिली यह सौगात भी संरक्षण मांग रही है। पाळ खंडहर होती जा रही है, घाट टूटते जा रहे। पाळ पर काफी संख्या में आम के पेड़ थे, जो भी नष्ट हो चुके।

बूंदीMay 14, 2024 / 05:32 pm

पंकज जोशी

संरक्षण मांग रहा खानपुरा का तालाब

नैनवां. उखड़ते जा रहे खानपुरा तालाब की पाल के पत्थर। पत्रिका

नैनवां. नैनवां के पास खानपुरा गांव का पांच किमी क्षेत्र में फैला रियासतकालीन खानपुरा तालाब प्राचीन धरोहर है। पुरखों से मिली यह सौगात भी संरक्षण मांग रही है। पाळ खंडहर होती जा रही है, घाट टूटते जा रहे। पाळ पर काफी संख्या में आम के पेड़ थे, जो भी नष्ट हो चुके। पन्द्रहवीं शताब्दी में तालाबों का निर्माण कराने वाले किलेदार नाहर खानसिंह ने ही खानपुरा तालाब का निर्माण कराया था।
प्रकृति की गोद में पहाड़ी के नीचे पहले अपने नाम से गांव बसाया, फिर बड़े तालाब का निर्माण भी कराया, जो आज भी गांव के लिए जीवन रेखा बना हुआ है। तालाब लबालब रहता है तो गांव को पानी का संकट नहीं झेलना पड़ता। तालाब की पाळ पर पहले बड़ी संख्या में आम व बरगद केे पेड़ होने से तालाब पर्यटक स्थल लगता था। तालाब के अन्दर ही हाथी की प्रतिमा स्थापित हो रही है। तालाब में नहाने के लिए घाट, बेवरियों का भी निर्माण कराया था। तालाब सूखने के बाद पानी का समस्या का समाधान के रूप में पाळ पर ही कुण्डनुमा बावड़ी का निर्माण कराया था। तालाब की पाल, घाट व बेवरिया संरक्षण मांग रही है। दीवारों में दरारे आ रही है। पाळ के ऊपर के पत्थर उखड़ते जा रहे है। पाळ के ऊपर बनी सुरक्षा दीवार भी खंडहर होती जा रही है। पाळ पर छोटे-छोटे घाट बने हुए थे, जिनकी सीढियां भी टूटती जा रही है।
पानी की आवक अवरुद्ध
दस वर्ष पूर्व तालाब को मॉडल तालाब के रूप में विकसित करने का कार्य भी चला था। पाळ की मरम्मत भी कराई गई थी, लेकिन कार्य पूरा नहीं हो पाया था। तालाब में पानी की आवक के रास्ते भी अवरुद्ध है। पानी की आवक बढाने के टोपा फीडर का निर्माण भी कराया था। फीडर निर्माण में रही तकनीकी खामी से लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी फीडर से पानी की आवक नहीं हो पाई।
आमों की अमराई हुई लुप्त
तालाब दो दशक पूर्व तक पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जाता था। अब दुर्दशा का शिकार बना हुआ है। तालाब की पाळ पर आम के वृक्षों की भरमार थी। गांव के बुजुर्ग बताते थे कि तालाब की लहरों के साथ आती शीतल बयार से गर्मी केे दिनों में पाळ वाताकुलूनित बनी रहती थी। लू के थपेड़ों से बचने के लिए गांव के लोग बैसाख व जेठ की दोपहरी पाळ पर काटते थे। तालाब की बेवरियों व बावड़ी का पानी इतना ठण्डा रहता था कि गर्मी में भी नहाने समय धूजणी छूट जाती थी। अब लोगों के घरों में ही नल, नलकूप व हैण्डपम्प लग जाने से नहाने के लिए तालाब से मुंह मोड़ लिया।

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