दस वर्ष पूर्व तालाब को मॉडल तालाब के रूप में विकसित करने का कार्य भी चला था। पाळ की मरम्मत भी कराई गई थी, लेकिन कार्य पूरा नहीं हो पाया था। तालाब में पानी की आवक के रास्ते भी अवरुद्ध है। पानी की आवक बढाने के टोपा फीडर का निर्माण भी कराया था। फीडर निर्माण में रही तकनीकी खामी से लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी फीडर से पानी की आवक नहीं हो पाई।
तालाब दो दशक पूर्व तक पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जाता था। अब दुर्दशा का शिकार बना हुआ है। तालाब की पाळ पर आम के वृक्षों की भरमार थी। गांव के बुजुर्ग बताते थे कि तालाब की लहरों के साथ आती शीतल बयार से गर्मी केे दिनों में पाळ वाताकुलूनित बनी रहती थी। लू के थपेड़ों से बचने के लिए गांव के लोग बैसाख व जेठ की दोपहरी पाळ पर काटते थे। तालाब की बेवरियों व बावड़ी का पानी इतना ठण्डा रहता था कि गर्मी में भी नहाने समय धूजणी छूट जाती थी। अब लोगों के घरों में ही नल, नलकूप व हैण्डपम्प लग जाने से नहाने के लिए तालाब से मुंह मोड़ लिया।