scriptसीमावर्ती जिलों के लोगों का पड़ोसी राज्यों पर भरोसा | Less medical Facility in border districts of Madhya Pradesh | Patrika News
भोपाल

सीमावर्ती जिलों के लोगों का पड़ोसी राज्यों पर भरोसा

स्वास्थ्य सुविधाएं: प्रदेश में मेडिकल कॉलेज सहित अन्य सुविधा बढ़ाने की जरूरत ताकि समय और धन बचे, पीड़ित को समय पर इजाज मिले

भोपालMay 19, 2022 / 08:00 pm

राजीव जैन

medical facility MP

medical facility MP

भोपाल. सीमावर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर प्रदेश सरकार का ध्यान कम है। ऐसे में 37 मेडिकल कॉलेज और 52 जिला अस्पतालों के बावजूद भी अच्छे और सस्ते इलाज के लिए हमारे मरीज इन राज्यों का रुख करते हैं। लोग इससे कम दूरी पर राजधानी भोपाल में एम्स या इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर जैसे प्रदेश के बड़े शहरों में मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशिलिटी में इलाज कराने की बजाय समीपवर्ती राज्य जा रहे हैं। सरकार यदि सुविधाएं बढ़ाए तो दूसरे राज्यों में मेडिकल टूरिज्म बढ़ाने की बजाय अपने राज्य में ही स्वास्थ्य पर लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार, प्रदेश में चिकित्सा सुविधाओं में इजाफा होने के बाद भी करीब 15 फीसदी मरीज पड़ोसी राज्यों के भरोसे हैं। उनका दावा है कि यह आकड़ा बीते दस साल में करीब आधा हो गया है। यह अच्छा संकेत है फिर भी पड़ोसी राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात चिकित्सा सुविधा में मध्यप्रदेश से बेहतर हैं। यह बात मेडिकल से जुड़ी रिपोटर्स में भी सामने आ चुकी है। इसलिए सीमावर्ती जिलों के मरीज राजधानी या राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों में जाने की जगह अपने पड़ोसी राज्यों का रुख कर लेते हैं।
कौनसे जिले किस राज्य पर निर्भर
आगर मालवा, राजगढ़ —- झालावाड़, कोटा (राजस्थान)
सीधी, सिंगरौली ——-वाराणसी (उत्तरप्रदेश)
नर्मदापुरम, बैतूल, छिदवाड़ा ——- नागपुर (महाराष्ट्र)
बड़वानी, झाबुआ, आलीराजपुर ——- अहमदाबाद (गुजरात)
सतना और रीवा ——- प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
बुरहानपुर ——- जलगांव या मुंबई (महाराष्ट्र)
केस 1… हमारे यहां जांच पर जोर कम
इटारसी निवासी 65 वर्षीय रमेशचन्द्र जनोरिया को रीढ़ की हड्डी में समस्या से पांच साल पहले बिस्तर से उठ नहीं पा रहे थे। इटारसी में सरकारी अस्पताल में दिखाने पर उचित इलाज नहीं मिला तो निजी डॉक्टर को दिखाया, यहां ऑपरेशन की सलाह दी। एक एक्सरे के भरोसे राजधानी भोपाल में भी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन बताया। परिवार ने दूसरी ओपिनियन के लिए नागपुर दिखाया। यहां निजी अस्पताल में दिखाया तो सबसे पहले एमआरआई जांच कराई। इसके बाद 300 रुपए की दवा और कमर में पट्टा बांधकर फिजियोथैरेपी से संबंधित कुछ सलाह दी। दस दिन में सुधार होने लगा, बीते चार साल से कोई समस्या नहीं है, वे सारा दैनिक कार्य भी खुद करते हैं।
केस 2… सिंगरौली में हृदय रोग का इलाज संभव नहीं
बैढ़न सिंगरौली के शिवम् मिश्रा हृदय रोगी हैं। जिला अस्पताल के अलावा उन्होंने एनसीएल के अस्पताल में भी चिकित्सक का परामर्श लिया, लेकिन संतुष्ट नहीं हुए। किसी दूसरे अस्पताल में जाने के बजाय वाराणसी में इलाज करा रहे हैं। प्रत्येक महीने जाते हैं।
अब राजस्थान वसूल रहा हमारे मरीजों से शुल्क
पड़ोसी राजस्थान में सरकारी अस्पतालों में एमआरआई, सिटी-स्कैन, न्यूरो सम्बन्धी इलेक्ट्रोमायोगाफी (ईएमजी), हार्ट से जुड़ी टू डी ईको जैसी महंगी जांच और 986 दवाइयों के साथ इलाज मुफ्त है। राजस्थान सीमा से लगे राजगढ़ जिले के खिलचीपुर, जीरापुर और माचलपुर क्षेत्र के लोग नार्मल डिलेवरी नहीं हो सकने वाली आधी गर्भवतियों तक को झालावाड़ ले जाते हैं। अस्पताल वाले राजस्थान का रेफर नहीं देते, ऐसे में परिजन अपनी मर्जी से ले जाना बताकर हर इमरजेंसी और डिलिवरी के लिए झालावाड़ ले जाते हैं। ऐसे में प्रदेश के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राजस्थान सरकार ने सरकारी अस्पतालों में एमपी से जाने वाले मरीजों के लिए नियम बदल दिए हैं। अब वहां की नि:शुल्क होने वाली जांच का शुल्क देना होगा। एक अप्रेल से एमपी के मरीजों से एमआरआई, सिटीस्कैन, सोनोग्रॉफी और पैथॉलॉजी लैब सहित अन्य जांचों का तय विभागीय शुल्क ले रहे हैं।
क्या सीखे मध्यप्रदेश
गुजरात : मुख्यमंत्री हेल्थ स्कीम के तहत जिला स्तर पर हेल्थ एटीएम खोले हैं, जिसमें 40 जांच मुफ्त होती है।

राजस्थान : जिला अस्पतालों में भी जांच निशुल्क की जाती हैं, दवाएं फ्री होने और संजीवनी योजना से सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ी है।
महाराष्ट्र : महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना में मुफ्त इलाज की सुविधा। मुफ्त और कैशलेस बीमा देने वाला पहला राज्य है। निजी अस्पतालों का अच्छा नेटवर्क और अपेक्षाकृत सस्ता इलाज।

एक्सपर्ट की राय
बीते दस साल में बाहर जाने वालों की संख्या आधी हो गई है। कार्डिएक, न्यूरोलाजी और न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में इस दौरान सुविधाओं में काफी वृद्धि हुई है। बीता ट्रेंड अब घट रहा है पर मेडिकल कॉलेजों में भी बड़े आपरेशन के दस में से करीब चार केस ही बाहर रेफर हो रहे हैं। यह मानव स्वभाव है कि हर व्यक्ति अपने से बड़े शहर में अच्छी सुविधा मानकर इलाज कराना चाहता है। एयर एंबुलेंस जैसी सुविधा बढ़ने से अब लोग दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों का भी रुख कर रहे हैं। कुछ मामलों में अस्पतालों की पीआरओशिप के कारण लोग बाहर जाते हैं, वापस आने पर वे यह मानते हैं कि हमारे यहां ही इससे बेहतर और सस्ता इलाज होता है। हां यह जरूर है कि जिला अस्पतालों में संसाधनों की दूसरे राज्यों के मुकाबले कमी है, पर बेसिक सु विधााओं में इजाफा हुआ है। दवा लिखने से पहले इन्वेस्टिगेशन और जांच करने में भी इजाफा हुआ है।
डॉ. आरएस शर्मा, मध्यप्रदेश की जबलपुर मेडिकल यूनिवर्सिटी के पहले कुलपति
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो