लॉकडाउन की वजह से देश ने पहली बार आर्थिक मंदी देखी है, हमें फिर से तरक्की करनी है। ऐसा पहली बार हुआ था कि लोग शहरों से गांवों की लौटे। दूरदृष्टि हो तो यह हमारे लिए एक अनोखा अवसर हो सकता था। गांवों में ही उन्हें रोजगार और रोजी दे सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें बिल्कुल साहस भरा और बड़ा कदम उठाना होगा। निवेश गांवों में ही करना होगा। आत्मनिर्भर गांव और कस्बे बना सकते हैं। लेकिन सरकारें तो लगातार एक गतिरोध के बाद दूसरे गतिरोध से जूझ रही हैं। उनके पास इन कामों के लिए समय ही नहीं।
खेती में हमारी प्राथमिकता अब पैदावार बढ़ाना नहीं बल्कि यह हो कि उसे कितना पौष्टिक और सेहतमंद बना सकते हैं। इसी से किसान की कमाई बढ़ेगी और पूरे देश के लोग जहरीले रसायन से भरा खाना खाने को मजबूर नहीं रह जाएंगे। पहले हमारे देश में हर मेल का अनाज होता था। आज जहां जमीन में पानी नहीं भी है वहां भी हमारी वजह से किसान गेहूं और चावल ही उगाने पर तुला हुआ है। पर्यावरण का सवाल विकास का सवाल है। किसान आज सडक़ों पर क्यों हैं? जलवायु परिवर्तन के कारण कभी सूखे में तो कभी बाढ़ में उनकी फसल बर्बाद हो जाती है। उस पर से हमारा मध्य वर्ग मशीन की बनी चीज के लिए जेब खाली कर देगा, लेकिन किसानों की उगाई चीजों की कीमत थोड़ी भी बढ़ी तो आसमान सर पर उठा लेता है। जैसे ही किसी उपज की कीमत बढ़ती है डरी सरकारें आयात कर लेती हैं और किसान बेचारा फिर वहीं के वहीं।
शहरों में हमारे लिए पानी सरकार हमारे घर तक पहुंचाती है, लेकिन किसान को अपना पानी खुद निकालना होता है। पराली जलाने के लिए आप क्या पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों को जेल में डालेंगे? उन्हें संसाधन देने होंगे, सशक्त करना होगा। कारखाने इतना प्रदूषण फैलाते हैं, कारों से इतना प्रदूषण होता है, इन्हें क्यों नहीं बंद कर दिया जाता?
नए साल में हमें कोयले जैसे अपने ईंधन को बदलना होगा। प्राइवेट गाडिय़ों की संख्या काबू करें। सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देना होगा। सारे संसाधन महानगरों में केंद्रित नहीं करें। विकास और खेती को सस्टेनेबल या संवहनीय बनाएं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे सभी संस्थानों को मजबूत करना होगा।
आप घर में पानी और हवा के प्यूरीफायर लगा कर निश्चिंत नहीं हो सकते। पर्यावरण बर्बाद होगा तो भुगतना सभी को पड़ेगा। चाहे वह अमीर हो या गरीब।
पानी सबसे कीमती विरासत है। राजस्थान ने इसे सहेजने का तरीका दिया है। लेकिन जयपुर के रामगढ़ जैसे जीवनदायी ऐतिहासिक जलस्रोत सूख रहे हैं। यह बहुत बड़ा सवाल है। आने वाले वर्ष में सेंटर फॉर सायंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) भी इस पर ज्यादा काम करेगा। आज हमारे सबसे बड़े मंदिर ये तालाब ही हैं। इनके पीछे के आगोर या कैचमेंट एरिया को बचा कर रखना होगा।